यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित

दूसरा शिक्षण सक्रियता का

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मित्रो! अंधकार से निजात, छुटकारा कैसे मिल सकता है? निजात पाने का एक ही तरीका है कि हमको प्रकाश मिल जाए। यज्ञाग्नि हमको यही सिखाती है, पहला शिक्षण यही देती है कि हम प्रकाशवान हैं। हम कौन हैं? अग्नि हैं। अग्नि कहती है कि आपको भी प्रकाशवान बनना चाहिए—एक। अग्नि की दूसरी नसीहत यह है कि हमारा जो पुरोहित है, जिसे हम यज्ञ की वेदी पर स्थापित करते हैं, उसको हम पुरोहित मानते हैं। बलिवैश्व के समय भी हम यह कहते हैं कि इसको जमीन पर मत रखना, यह आपका पुरोहित है। पुरोहित को सिंहासन दिया जाता है और यज्ञाग्नि के लिए यज्ञवेदी तैयार की जाती है। जमीन पर नहीं रखते हैं। आपने यह जो यज्ञ की वेदी बना दी है, वह सिंहासन बना दिया है। आपने दरजा ऊपर कर दिया है, जमीन पर नहीं बिठा दिया। यह क्या है? बेटे! यह दूसरी वाली शिक्षा है। यह है कि जो आग है, यज्ञाग्नि है जिसकी हम पूजा करते हैं, फायर वर्शिप के नाम पर जिस अग्निहोत्र को हम पेश करते हैं, उससे हम नसीहत लेते हैं। अग्निहोत्र भी नसीहत देता है? यह नसीहत देता है कि जब तक अग्नि जिंदा रहती है, तब तक गरम रहती है, हमारे जीवन में भी गरमी बनी रहनी चाहिए। हर इनसान को, हर अग्नि उपासक को अपने पुरोहित से एक शिक्षा अवश्य ग्रहण करनी चाहिए कि वह जिंदगी भर गरम बना रहे। गरमी से क्या मतलब है? बेटे! गरम से मतलब है सक्रिय बने रहना। क्रिया से गरमी पैदा होती है। आखिर गरमी है क्या और कहाँ से आती है? कैसे गरमी रगड़ से पैदा होती है और किसी तरीके से नहीं होती है। गरमी पैदा होने का एक ही तरीका है रगड़ का होना—रगड़ होने का मतलब है—क्रियाशीलता का होना, सक्रियता का होना।
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