यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित
देवियो, भाइयो! चारों वेदों में पहला वाला वेद है ऋग्वेद और ऋग्वेद का पहला वाला मंत्र, जिसमें ज्ञान और विज्ञान की सारी की सारी धाराएँ भरी हुई हैं । वह इतना महत्त्वपूर्ण है कि आप देखेंगे तो पाएँगे कि मनुष्य जीवन की भौतिक और आर्थिक एवं आत्मिक उन्नति को विकसित करने के इस मंत्र में बहुत बड़े संकेत छिपे पड़े हैं । क्या मंत्र है ? ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य दैवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम्।। यह पहला वाला मंत्र है । इसमें यज्ञ की प्रशंसा की गई है, उनकी प्रार्थना की गई है । भगवान को यज्ञरूप बताया गया है । भगवान कैसे हैं ? भगवान कैसे हो सकते हैं ? भगवान दिखाई तो नहीं पड़ते । भगवान को हम कहाँ ढूँढने जाएँ! भगवान को हम किस तरीके से देख पाएँ ? भगवान को देखने की मनुष्य की इस इच्छा का समाधान ऋग्वेद के इस पहले वाले मंत्र में किया गया है । जब हम भगवान को आँख से देखना चाहते हैं तो भगवान का एक ही रूप है और वह कौन सा रूप है - अग्नि अर्थात यज्ञाग्नि । यज्ञाग्नि को क्या कहा गया है ? क्या नाम दिया गया है ? उसका नाम दिया गया है पुरोहित । पुरोहित किसे कहते हैं ? पुरोहित उसे कहते हैं, जो मार्ग दिखाता है, रास्ता दिखाता है, उपदेश करता है और हमको गलत रास्ते से घसीट करके सही रास्ते पर ले जाता है । ऐसे आदमी का, ऐसे मार्गदर्शक का नाम पुरोहित है ।
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