बेटे! तू तो कुछ काम करता है कि नहीं करता है? नहीं साहब! मैं तो नहीं करता। बेटे! काम तो करना चाहिए। समाज के लिए करना चाहिए। अपने लिए करना चाहिए किसी के लिए भी करना चाहिए। आदमी को निष्क्रिय नहीं बैठना चाहिए। हमारे समाज में निष्क्रियता आई और आलस्य हमारे समाज में आया कि दरिद्रता हमारे समाज में आई। अपने समाज में हर आदमी इस बात की शान समझता है कि हमको निष्क्रिय बैठने को मौका मिले और हमको काम न करना पड़े। जिसके पास कड़े काम हैं, मेहनत के काम हैं, उनसे वह भागना चाहता है। कड़े काम से आदमी भागता है। हमारे देश के पिछड़ेपन की, दरिद्रता की यही निशानी है। काम का सम्मान कम कर दिया गया है। काम का सम्मान कम कर देने से समाज में कैसी आफत आ गई, आपको दिखाई नहीं पड़ती। जो व्यक्ति काम नहीं करते, उन्हें बड़ा आदमी माना गया और जो व्यक्ति रात-दिन काम करते हैं, पसीना बहाते हैं, उन्हें छोटे वर्ग का कहा गया है और अलग कर दिया गया क्योंकि ये श्रमिक हैं, मजदूर हैं। हमारे देश का दुर्भाग्य यहीं से शुरू होता है। हमारे देश की दरिद्रता यहीं से शुरू होती है। हमने अपनी बेटी का विवाह करने का विचार किया और यह तलाश किया कि हमारी बेटी ऐसे घर में जानी चाहिए जहाँ पलंग पर बैठ करके राज्य किया करे। इसका क्या मतलब है? यह कि हम चाहते हैं कि हमारी बेटी जहाँ कहीं भी जाए उसे काम न करना पड़े। फिर कौन काम करे? खाना पकाने वाली जिसके घर में हो, जो रोटी बना जाया करे। चौका-बरतन वाली चौका-बरतन कर जाया करे। बच्चा खिलाने वाली बच्चे खिला जाया करे। झाड़ू लगाने वाली झाडू लगा जाया करे और सब काम कर जाया करे। हाँ साहब! हमारी बेटी बहुत अच्छी है। जरा सा भी काम न करना पड़े। अच्छा तो अबकी बार बेटी के पास जाना और एक बात पूछना, तूने एक के लिए नौकर रखा कि नहीं रखा? क्या पूछ करके आना? यह पूछकर आना तूने खाना खाने के लिए नौकर रखा है कि नहीं रखा है? बेटी खाना खाएगी, तो मुँह चलाएगी। इससे तेरे दाँत घिस जाएँगे। इसलिए नौकरानी रख ले। वह तेरे बदले का खाना खा लिया करेगी, चाय पी लिया करेगी। चुप बदमाश कहीं के, हरामखोरी की बात करता है।