यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित

'धी' तत्त्व भी ज्ञान का ही प्रतीक

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मित्रो! गायत्री में भी ज्ञान के लिए ''धी'' कहा गया है। ''धी'' क्या चीज है? यह वह ज्ञान है, जो हमारी आत्मिक समस्याओं का समाधान करती है। ज्ञान का अर्थ केवल यह है कि जो हमारी आन्तरिक समस्याएँ आन्तरिक गुत्थियाँ उलझी पड़ी हैं और सुलझने में नहीं आतीं, यह उनका समाधान प्रस्तुत करता है। हमारे भीतर कितना अँधियारा भरा पड़ा है। बाहर तो अँधियारा नहीं है। दिन को सूरज चमकता है और रात को चंद्रमा चमकता है। चाँद और सूरज नहीं भी चमकते हैं तो हम बत्ती जला सकते हैं, दीपक जला सकते हैं। इससे यह अँधियारा तो दूर हो सकता है, लेकिन हमारे भीतर जो सघन अंधकार छाया हुआ है, जिसकी वजह से हमें रास्ता दिखाई नहीं पड़ता। कहाँ चले जाएँ इसका कुछ पता नहीं चलता। कहाँ जाना चाहिए इसका भी कुछ पता नहीं चलता और हम जिंदगी भर भटकते रहते हैं और यह तलाश करते रहते हैं कि जाना किधर है? सारी जिंदगी यही पता नहीं चल सका कि जाना कहाँ है। इन इंद्रियों ने जिधर भटका दिया, उधर ही चल दिए। पैसे ने भटका दिया तो उधर ही चल दिए। दोस्तों ने भटका दिया तो हम चल दिए। सारे जीवन में भटकन हो भटकन हमारे हिस्से में आई है, परंतु हमको कोई रास्ता न दिखा सका, जिसको देख करके हमको वस्तुस्थिति का पता चल जाता। जिससे ज्ञान हो जाता और वास्तविकता की जानकारी हो जाती। कमरे में अँधेरा ही अँधेरा भरा पड़ा है। बत्ती नहीं जलाने की वजह से, ज्ञान का प्रकाश न होने की वजह से हमें जीवन की एक भी समस्या का वास्तविक स्वरूप दिखाई नहीं पड़ता। न हमारे हाथ समाधान लगते हैं और न हमको समस्याओं का स्वरूप मालूम पड़ता है। हम केवल भटकते रहते हैं। इधर-उधर ढूँढ़ते रहते हैं कि इसका कारण यह भी हो सकता है और समाधान यह हो सकता है। हजारों समाधान तलाश करते हैं, हजारों काम तलाशते हैं और कहीं कुछ पता नहीं चलता। न कोई निदान हो पाता है और न हम कोई चीज तलाश कर पाते हैं, बस, भटकते रहते हैं। न मरज का पता है और न दवा का पता है कि कौन सी दवा कारगर हो सकती है।
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