यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित

सतत काम, छुट्टी का नाम नहीं

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मित्रो! हमारा दिमाग बराबर काम करता रहता है। काम करने से वह कभी रुक नहीं सकता। सूरज बराबर काम करता है। बंद हो जाएगा? नहीं बेटे! एक सेकंड के लिए भी उसे छुट्टी नहीं है। धरती को जबसे ब्रह्मा जी ने बनाया था, उस दिन से लेकर के जब तक इस धरती की मौत आएगी, तब तक एक दिन की भी छुट्टी नहीं मिलने वाली है। हमको जीवन में छुट्टी नहीं मिलती और आदमी को भी कभी छुट्टी नहीं मिलनी चाहिए। बहुत सारे डिपार्टमेंट्स ऐसे हैं, जिनमें कभी छुट्टी नहीं मिलती। नहीं साहब! हरेक को साप्ताहिक छुट्टी मिलती है। नहीं बेटे! कितने ही डिपार्टमेंट ऐसे हैं, जिनको कभी छुट्टी नहीं मिलती। किसको नहीं मिलती? चलिए मैं बताता हूँ जैसे—जेलखाना। आप गिरफ्तार हो जाइए। नहीं साहब! आज तो रविवार है और आज आपको बाहर घूमना पड़ेगा। कल आपको भरती करेंगे। अरे भाई! हमको अभी भरती होना पड़ेगा। हम डाका डालकर आए हैं। आप हमको पकड़िए और जेल में बंद कीजिए। जेलखाने में कभी छुट्टी नहीं होती। दवाखाने की छुट्टी नहीं होती। घायल हो गए हैं, बंदूक की गोली लगी है। साँप ने काट खाया है।चलिए भरती हो जाइए। छुट्टी है? नहीं छुट्टी नहीं है। काम करते-करते घिस जाएँ आराम न करें।

मित्रो! मनुष्य के जीवन में कभी छुट्टी नहीं होनी चाहिए। मनुष्य के जीवन का हर पल सक्रिय हो। हर समय मनुष्य को सक्रिय रहना चाहिए। हर समय मनुष्य को क्रियाशील बने रहना चाहिए। सक्रियता के बारे में, क्रियाशीलता के बारे में आदमी को हथियार नहीं डालना चाहिए। हम काम करेंगे। कब तक काम करेंगे? जब तक साँस चलेगी। रिटायर्ड होंगे तब? तब हम दूना काम करेंगे। पहले हमें कमाने की फिक्र थी, इसलिए रोटी कमानी पड़ती थी। अब तो रोटी के लिए पेंशन मिलती है, इसलिए अब हम समाज का काम करेंगे और ज्यादा काम करेंगे और करना भी चाहिए। यह क्या है? बेटे! यह क्रियाशीलता की गरमी है, जो बताती है कि आदमी को कर्मनिष्ठ होना चाहिए और कर्मयोगी होना चाहिए और निरंतर मेहनत का काम करना चाहिए। नहीं साहब! मेहनत का, मशक्कत का काम करने से थक जाएँगे। नहीं बेटे! कोई नहीं थकेगा। चलिए मैं यह मान भी लेता हूँ कि आप थक जाएँगे, तो यह आपकी शान है। हमारे यहाँ मथुरा में एक नाई थे छबिलाल। उनके पास सात पीढ़ी का एक उस्तरा था। घिसते-घिसते उस्तरा इतना बच गया था कि पीछे वाली पीठ बची थी और जरा सी नोंक रह गई थी। उसे दिखाकर वे कहते थे कि सात पीढ़ी से यह उस्तरा हमारे पास है। तब से अब यह मात्र इतना रह गया है। नाममात्र की नोंक रह गई थी, उस जंग खाए हुए उस्तरे में। जंग खाए हुए उस्तरे के ऊपर लानत है और जो आदमी काम करते-करते घिस गया, उसकी इज्जत है। आदमी काम करते-करते घिस जाए काम करते-करते मर जाए यह उसकी शान है, इज्जत है। जो हरामखोर बैठे रहते हैं और यह सोचते हैं कि हमारे बेटे कमाते हैं, हमारे पोते कमाते हैं, हमारा बाप कमाकर रख गया है और हमारे पास बहुत आमदनी है, पेंशन हमारे पास है, खेती-बारी हमारे पास है तो हम अब काम क्यों करें? बेटे! उन पर लानत है।
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