इससे उद्धार हो सकता है? नहीं बेटे! इससे उद्धार नहीं हो सकता है। तो फिर किस तरह से उद्धार होता है? दुनिया में इसका एक ही तरीका है और एक ही क्रिया कि आदमी अपने व्यक्तित्व और अपने चरित्र के माध्यम से शिक्षण करे। दूसरे आदमी जब देखेंगे कि वह आदमी जिस बात पर विश्वास करता है, उसके स्वभाव में यह बात क्यों नहीं आती, उसके व्यवहार में यह बात क्यों नहीं आती? जो बात वह दूसरों से कहता है, अगर वह बात सही है तो सबसे पहले उसी ने फायदा उठाया होता। सबसे पहले अपने जीवन में वही धारण करने में समर्थ रहा होता, लेकिन अपने जीवन में वही धारण नहीं कर सका तो हमारे लिए क्या फायदेमन्द हो सकता है? इतना फायदेमन्द होता तो स्वयं क्यों न अपने लिए इस्तेमाल करता! इससे मालूम पड़ता है कि दाल में कुछ काला है। वह औरों को तो सिखाना चाहता है, पर अपने आप को नहीं सिखाना चाहता है। अविश्वास यहीं से पैदा हो जाता है और आदमी इस बात को मानने से पहले इनकार कर देते हैं। इसलिए हम आपसे यह कह रहे थे कि हमारा पुरोहित, जो हमारे जीवन को वास्तव में विकसित कर सकता हो ,जो हमारे जीवन का वास्तविक कल्प करना चाहता हो, वह पुरोहित ऐसा होना चाहिए जो अपने चरित्र के माध्यम से हमारा शिक्षण कर सकता हो। इस मामले में यज्ञाग्नि अपनी कसौटी पर खरी व सही उतरती है।