यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित

शब्दों से-वाणी से नहीं, क्रिया से असर

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शब्दों का क्या असर होता है? शब्दों का नहीं होता, क्रिया का असर होता है। अगर आपको किसी पर असर डालना हो, किसी पर छाप डालनी हो, अगर आपको वास्तव में कोई शिक्षण करना हो तो उसका तरीका जबान नहीं है। जबान की लप-लप बहुत ज्यादा कारगर नहीं हो सकती। आपको कथा कहना आता है, पुस्तक पढ़ना आता है, अच्छी बात है। हम आपकी प्रशंसा भी कर सकते हैं, लेकिन हम आपसे यह उम्मीद नहीं रखेंगे कि आपकी जबान का यह असर होगा कि लोग आपका कहना भी मान लेंगे और आपके बताए रास्ते पर चलने लगेंगे। अगर ऐसा रहा होता और कहने भर से लोगों ने मान लिया होता और पढ़ने से लोगों ने मान लिया होता तो गोरखपुर की गीताप्रेस ने जो पुस्तकें छापी हैं, उनकी तादाद करोड़ों जा पहुँची है, एक करोड़ से अधिक गीता की पुस्तकें छाप करके दे दी उन्होंने। इसे पढ़ने वाले सारे के सारे लोग अर्जुन हो गए होते, लेकिन गीता पढ़ने के बाद तो एक भी व्यक्ति अर्जुन न हो सका। क्या हुआ लेखनी का? क्या लेखनी बेकार है? नहीं बेटे! बेकार नहीं है। वह जानकारी देने में समर्थ हो सकती है। जीभ का भी यही हाल है। कितने सारे पंडित, कितने सारे रामायणी, कितने सारे कथा-वक्ता, कितने सारे लेक्चर देने वाले धार्मिक लेक्चरों से, राजनीतिक लेक्चरों से बेचारे माइक का दिवाला निकाले जा रहे हैं। माइकों का कचूमर निकला जा रहा है। बोलने वाले कहते हैं कि माइक कम पड़ते हैं। हर साल माइक कंपनियों और उत्पादन करती हैं, फिर भी कमी रहती है। बकवास करने वालों को अभी बहुत से माइकों की जरूरत है। अभी और बनाइए और बकवास करने वाले माइकों के ढेर लगा देते हैं। लाउडस्पीकरों का ढेर लगा देते हैं।
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