मित्रो! यज्ञ हमको छह नसीहतें देता है। छह नसीहतें बहुत नहीं हैं। महाराज जी! बहुत सारे व्याख्यान दीजिए। नहीं बेटे! बहुत सारे व्याख्यान देने की जरूरत नहीं है छह व्याख्यान बहुत हैं। यज्ञ, अग्नि, यज्ञाग्नि जिसका हम प्रचार करते हैं और जिसका आपको रोज हवन कराते हैं। हमारी कन्याएँ नियमित रूप से हवन करती हैं। आप तो नहीं कर पाते, वर्षा हो जाती है तो बंद करना पड़ता है, पर हमारे यहाँ यह रोज प्रज्वलित रहता है। गायत्री तपोभूमि में रोज यज्ञ होता है। इसको हम रोज के लिए बलिवैश्व के रूप में घर-घर में फैलाना चाहते हैं। यह क्या शिक्षा देता है? छह नसीहतें देता है, जिन्हें यदि आप जीवन में उतार लें तो आपका बेड़ा पार हो सकता है। ये नसीहतें क्या हैं? यज्ञाग्नि की, अग्नि की एक नसीहत यह है कि वह सदा प्रकाशवान बनी रहती है। कभी भी इसका प्रकाश बंद नहीं हो सकता। आग जलेगी तो रोशनी जरूर होगी। आग बुझ जाएगी तो रोशनी भी बुझ जाएगी। आग जलेगी तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसमें से प्रकाश नहीं निकलता हो। प्रकाश का अर्थ क्या हो सकता है? आदमी में प्रकाश तो नहीं है। आदमी कोई बत्ती नहीं है, बल्ब नहीं है, जो जलेगा। फिर यज्ञ का अनुसरण करने वाले का क्या होना चाहिए? प्रकाश होना चाहिए। प्रकाश किसे कहते हैं? बेटे! व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन में प्रकाश का जहाँ कही भी इस्तेमाल किया गया है, ज्ञान के अर्थ में किया गया है। ''स्टेंट लाइट'', ''डिवाइन लाइट'', ''तमसो मा ज्योतिर्गमय'' आदि ज्ञान के अर्थ में ही प्रयुक्त हुए हैं। प्रकाश का अर्थ चमक नहीं है, जैसा कि आप बार-बार समझते रहते हैं। आज्ञाचक्र में हम ज्योति का ध्यान कराते हैं। क्यों साहब! इसमें तो हमको कुछ चमकता हुआ नहीं मालूम पड़ता। जब हम ध्यान लगाते हैं तो इन भौंहों के बीच कोई चमकता हुआ प्रकाश नहीं मालूम पड़ता। गुरुजी! आप तो हमको रोज ध्यान कराते हैं, पर ऐसा कुछ नहीं दिखाई पड़ता।