यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित

यज्ञ है हमारा पुरोहित

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मित्रो! अग्नि हमारा पुरोहित है। कुछ शिक्षा ग्रहण करनी हो, ज्ञान ग्रहण करना हो, आपको कोई आदर्श या सिद्धांतों की बाबत जानकारी प्राप्त करनी हो तो मनुष्यों के पास भटकने की जरूरत नहीं है। मनुष्य बड़े बेअकल होते हैं और हजार तरह की बातें बनाते हैं। एक व्यक्ति ऐसे बात कहता है, दूसरा ऐसे कह देता है, तीसरा ऐसे कह देता है, चौथा ऐसे कह देता है। कोई समाधान ही नहीं है। एक पंडित का दूसरा पंडित विरोधी बना बैठा हुआ है। एक मजहब का दूसरा मजहब विरोधी बना बैठा हुआ है। एक देवता की दूसरा देवता काट करने के लिए तैयार बैठा हुआ है। देवताओं की लड़ाई आप देखिए। ''देवी पुराण'' में देवी की महत्ता बताई गई है और ब्रह्मा, विष्णु महेश को उनका गुलाम-नौकर बताया गया है। आप ''शिव पुराण'' देख लीजिए ''शिव पुराण'' में शंकर जी सबसे बड़े हैं और विष्णु जी उनके नौकर हैं और फलाने जी उनके नौकर हैं। आप यह सब देखेंगे तो पता नहीं चलेगा कि यह क्या चक्कर है! फिर आपको ज्ञान प्राप्त करने के लिए किसके पास जाना चाहिए? पुरोहित के पास। पुरोहित के पास कैसे जाना चाहिए जो भगवान का प्रतिनिधि हो अथवा भगवान का रूप हो अथवा भगवान के भेजे हुए संदेश को इस प्रकार कहता हो कि जिसमें हमें शक-शुबहा करने की गुंजाइश न रहे। यह कौन सा देवता है? यज्ञो वै विष्णु:। निश्चयपूर्वक, विश्वासपूर्वक पट्ठा ठोंक करके, छाती ठोंक करके हम कह सकते हैं कि यज्ञ ही विष्णु है।

यह किसने कहा? ''शतपथ ब्राह्मण'' ने कहा-निश्चय, जरूर, गारण्टी से, विष्णु जो है, वही यज्ञ भगवान है। जीवंत भगवान कैसे हो सकता है। जीवंत भगवान एक तो वह है, जो सबके भीतर समाया हुआ है, सब जगह समाया हुआ है, लेकिन अगर आपको प्रत्यक्ष देखने का मन हो, जो आपके सामने खड़ा हो करके आपका मार्गदर्शन कर सके और आपको सुझाव दे सके और आपके लिए लक्ष्य निर्धारित कर सके तो उसका नाम यज्ञ है। यज्ञ की क्या विशेषता है? अग्निमीले पुरोहितं। अग्नि जो हमारा पुरोहित है, जो हमारा मार्गदर्शक है, वह हमें क्या सिखाता है? बोलता तो जरूर नहीं है, बात-चीत भी नहीं करता। लिखना-पढ़ना भी नहीं जानता, लेकिन जिसको हम वास्तविक शिक्षा कहते हैं, जो आदमी के व्यक्तित्व पुरोहित में प्रकट होती है, चरित्र में प्रकट होती है, वह जीभ से प्रकट नहीं होती है। लोगों का यह खयाल है कि हम लोगों को शिक्षा देंगे। यह शिक्षा आप किससे देंगे? जीभ से देंगे। जीभ तो बेटे! माँस की है और माँस की जीभ माँस को प्रभावित कर सकती हो तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन आदमी की आत्मा को प्रभावित नहीं कर सकती। जीभ का विश्वास कौन करता है! जीभ तो बड़ी वाहियात है, जीभ तो बड़ी चटोरी है, जीभ बड़ी नामाकूल है। पंडित जी कहें या और कोई कहे, जीभ का असर बहुत थोड़ा सा होता है, जानकारी तक होता है। जीभ से शब्द निकलते हैं और कान तक घुस जाते हैं और कान में घुसने के बाद में दिमाग का चक्कर काट करके दूसरे कान में से विदा हो करके बाहर चले जाते हैं। बस, उनका असर खतम हो गया।
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