यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित

पहली शिक्षा : प्रकाश की उपासना

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मित्रो! वास्तविकता की जानकारी जिसको हो जाती है, उसे ज्ञान हो जाता है। वास्तविकता को हम ज्ञान कहते हैं, यज्ञाग्नि कहते हैं, जो हमको सिखाती है कि आदमी को प्रकाशवान होना चाहिए। आदमी को ज्ञानयुक्त होना चाहिए जिससे वास्तविकता को समझा जा सकता है और वास्तविकता को समझने में समर्थ हो सकता है। दीपक शान से जलता रहता है और चहुँओर अपना प्रकाश फैलाता है। वह अपनी ओर सबकी आँखों को आकर्षित करता रहता है और जहाँ-कहीं भी रखा रहता है, वहीं रोशनी पैदा करता रहता है, भटकाव को दूर करता रहता है। यज्ञाग्नि हमारा पुरोहित हो और हम उसके शिष्य हों, ''होता'' हों, यज्ञ को मानने वाले हों। हमको किसकी उपासना करनी पड़ेगी? हमको प्रकाश की उपासना करनी पड़ेगी। पहली वाली शिक्षा हमको यही मिलती है क्योंकि हमारा पुरोहित, हमारा यज्ञाग्नि हमको रोशनी देता है और पहली बात यह कहता है कि आप रोशनी प्राप्त कीजिए। दिशा प्राप्त कीजिए रास्ता प्राप्त कीजिए। अभी हमारे जीवन में रोशनी का अभाव है। अगर रोशनी मिल जाती तो जीवन सार्थक हो जाता। भगवान बुद्ध को रोशनी मिल गई थी, प्रकाश मिल गया था। एक छोटे से राजकुमार से हट करके वे भगवान बन गए थे। महाराज जी! क्या इनसान भगवान हो सकता है? हाँ बिलकुल हो सकता है, अगर उसको प्रकाश मिल जाए तब, लेकिन अगर अंधकार मिल जाए तो उसकी ऐसी मिट्टी पलीद होने लगती है, जैसी हमारी-आपकी होती है। दुर्बुद्धि हमको पटक-पटक करके मारती है, रुला-रुला करके मारती है और इस कदर हैरान करती है, जैसा कि हमारा कोई दुश्मन भी नहीं कर सकता।
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