मित्रो! जहाँ-कहीं भी देखिए हर आदमी काम से मेहनत से जान छुड़ाना चाहता है। बिना मशक्कत के रहना चाहता है। मशक्कत से जान छुड़ाएँगे तो मैं एक बात कहूँगा कि मशक्कत के दबाव से तो आप बच सकते हैं, लेकिन इसका जो बदला आपको चुकाना पड़ेगा, बीमारी के रूप में चुकाना पड़ेगा, यह ध्यान रखना। आप हरामखोर हो जाइए कोई बात नहीं लेकिन मैं आपसे फिर कहता हूँ कि नेचर आपसे किसी तरह से बदला चुका लेगी। आपको बराबर कमजोर बनाती जाएगी और आपके हाथ-पाँवों को अपाहिज जैसा बनाती चली जाएगी। अगर आप यह चाहते हैं कि आप काम नहीं करेंगे और आपके पास दौलत आती रहेगी तो ऐसा नहीं होगा। दौलत खतम हो जाएगी और आपके पास अक्ल आएगी? नहीं, अक्ल भी चली जाएगी। अक्ल रहेगी? नहीं, निकम्मे आदमियों की अक्ल चली जाती है। निठल्ले आदमियों के पास, बैठने वालों के पास बैठी रह जाती है। जो आदमी बैठा रहता है, उसका भाग्य भी बैठा रहता है। जो आदमी सोता रहता है, उसका भाग्य भी सोता रहता है और जो आदमी सीधा तनकर खड़ा हो जाता है, उसका भाग्य भी तनकर खड़ा हो जाता है। जो आदमी चलना शुरू कर देता है, उसका भाग्य भी चलना शुरू कर देता है। मैं आपसे यही कह रहा था कि हमारा पुरोहित यही सिखाता है कि मानव समाज में हमें सक्रियता की परंपरा कायम रखनी चाहिए। हर आदमी को अपने तरीके से काम करना चाहिए। बुड्ढा है तो बुड्ढे के तरीके से काम करे, जवान है तो जवान के तरीके से काम करे। नहीं साहब! हम तो सास हैं। सास हैं, तो माताजी! आप सास के ढंग से काम कीजिए। आप बैठी क्यों रहती हैं? सास को भी काम करना चाहिए। नहीं, हमारी बहू आ गई है, तो वह रोटी खाती है। आप रोटी क्यों खाती हैं? बेटे! हर आदमी की शान, हर आदमी की इज्जत होनी चाहिए हर आदमी को गर्व-गौरव होना चाहिए कि वह क्रियाशील है। क्रियाशीलता हमारी अग्नि की शिक्षा है। गरमी हमारी अग्नि की शिक्षा है। रोशनी और गरमी हमारे पुरोहित के दो शानदार शिक्षक हैं। इन्हें जीवन का अंग बनाना चाहिए।
बेटे! अग्नि हमें एक शिक्षा और देती है। अग्नि में हम जो कुछ भी डालते हैं, वह अग्नि बनता जाता है। अग्नि सबको अपना जैसा बनाती जाती है। हमें भी अग्नि की तरह प्रकाशवान और गरम अर्थात सक्रिय बनना चाहिए। हमारे संपर्क में जो भी आएँ उन्हें भी अपने जैसा गुणवान बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। हमें डाई बनना चाहिए। साँचा बनना चाहिए। हम स्वयं गुणवान बनें और दूसरों को गुणवान बनाएँ यह शिक्षा हमें अपने पुरोहित यज्ञाग्नि से मिलती है। अग्नि हमारी पुरोहित है तो हम अग्नि के समान बनें। हम सबको अपने व्यक्तित्व से प्रभावित करें। ऐसा तब ही संभव हो पाता है, जब हमारी श्रद्धा निष्ठा अपने सिद्धांतों के प्रति हो। जब शैतान अपने व्यक्तित्व से प्रभावित कर दूसरों को शैतान बना सकता है तो हम सज्जन व्यक्ति दूसरों को सज्जन क्यों नहीं बना सकते हैं? बना सकते हैं लेकिन उसके लिए अपने सिद्धांतों के प्रति पूरा विश्वास और निष्ठा होना चाहिए। मित्रो! अग्नि हमारी पुरोहित है। अग्नि हमें एक और शिक्षा देती है। अग्नि की गति ऊर्ध्व होती है। अग्नि हमेशा ऊपर की ओर गति करती है। यज्ञाग्नि हमें यह शिक्षा देती है कि हमें अपना दृष्टिकोण ऊँचा रखना चाहिए अपना आचरण ऊँचा रखना चाहिए। अग्नि को हम कितना भी नीचे ओर झुकाने का प्रयास करें लेकिन वह नीचे की ओर गति नहीं कर सकती है, हमें भी किसी दबाव में नहीं आना चाहिए। लोभ, लालच, मोह के वश में आकर हमें अपना आचरण नीचे नहीं गिराना चाहिए।
बेटे! मैंने अपने पुरोहित अग्नि की शिक्षाओं के बारे में तुम्हें बता दिया है। यदि हम इन शिक्षाओं पर चलेंगे तो स्वयं अग्नि रूप बन सकेंगे और अग्नि को देवता का भगवान का दर्जा मिला हुआ है, उसी प्रकार हमारा भी दर्जा ऊँचा होता हुआ चला जाएगा।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥