परकाया प्रवेश

यह क्रिया नयी नहीं है

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राजा को अपने राज्य की व्यवस्था करने के लिये मन्त्री की आवश्यकता होती है। मन्त्री अपनी योग्यतानुसार सारे शासन तंत्र को चलाता है। इसी प्रकार आत्मा की कार्यवाहिनी शक्ति का नाम प्राण है। यह मन से कुछ ऊंची और सुसंस्कारित सत्ता है। यह प्राण शक्ति शरीर के विभिन्न अंगों में अपनी प्रेरणा से क्रिया उत्पन्न करती है। हमारे शरीर के कल-पुर्जों के चलने में जो क्रिया हो रही है, वह अद्भुत है। वैज्ञानिकों का मत है कि मनुष्य के शारीरिक और मानसिक कामों को चलाने में इतनी विद्युत शक्ति खर्च होती है जितनी से बड़ा मिल चल सकता है। मनुष्य की तमाम शक्तियों से सम्पन्न एक कृत्रिम मनुष्य बनाया जाय तो उसके संचालन में एक बिजलीघर की सारी शक्ति लग जायगी। मृत्यु क्या है? उस बिजलीघर का फेल होना है। शरीर के तमाम कल-पुर्जे बदस्तूर रहते हैं, कोई कहीं से टूटता-फूटता नहीं, केवल विद्युतधारा बन्द हो जाती है। शरीर की बिजली का क्षेत्र केवल अपने कल-पुर्जों तक ही सीमित नहीं है वरन वह बाहर की चीजों पर प्रभाव डालने और उनसे शक्ति ग्रहण करने का काम भी करती है। एक वैज्ञानिक ने अपने गहरे अनुभव के आधार पर बताया है कि हमारी बिजली का एक-तिहाई भाग कल-पुर्जों के चलाने में खर्च होता है। एक-तिहाई से यह गुप्त क्रिया होती है कि अनन्त आकाश में उड़ते फिरने वाले विचार, बल आदि को पकड़े और उनमें से अरुचिकर, हानिकारक, रोग-कीटाणु, बुरे विचार आदि को दूर फेंके। शेष एक-तिहाई बिजली दूसरों पर अपना प्रत्यक्ष प्रभाव डालने और उनका अच्छा असर ग्रहण करने के काम आती है। इन तीन भागों में से भी प्रत्येक तिहाई की शक्ति असंख्य मार्गों द्वारा खर्च होती रहती है। या यों कहना चाहिये कि उस पावर हाउस में असंख्य तार लगे हुए है और वे भिन्न-भिन्न दिशाओं में विभिन्न कार्य करते रहते हैं। मानव शरीर की विद्युत का अन्वेषण करने वाले कहते हैं कि हाल के जन्मे बालक की तमाम बिजली एकत्रित करली जाय, तो उससे डाक गाड़ी का एक इंजन चल सकता है। बड़े होने पर यह शक्ति बढ़ती है और जो व्यक्ति इसे बढ़ाने की कोशिश करते हैं, उन्हें तो और भी अधिक बल मिल जाता है। 
यह शक्ति पशु-पक्षियों के शरीर में भी होती है। भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और वैज्ञानिक श्री हंसराज जी ने वायरलेस बेतार के तार का एक यंत्र बनाने में छिपकलियों के शरीर से काफी मदद ली थी। खद्योत अपने शरीर की बिजली को चमकाकर कैसा सुन्दर प्रकाश करता है। एक प्रकार की मछली छोटे जल जन्तुओं का शिकार करते समय अपनी बिजली का ऐसा झटका देती है कि वह बेहोश हो जाते हैं। बड़े अजगर सर्पों की विद्युत से छोटी चिड़ियां और मेंढक मूर्तिवत अचल खड़े रह जाते हैं। भेड़िये को देखते ही भेड़ का भागना तो दूर उसके मुंह से आवाज निकलना तक बन्द हो जाती है। बिल्ली, शेर, बाघ आदि भी अपने शिकार को पकड़ते समय इस शक्ति से काम लेते हैं। उसमें आकर्षण (Negative) और विकर्षण (Positive) दोनों ही धारायें विद्यमान होती हैं। क्रोधित और रोष में भरे हुए व्यक्ति को सामने देखकर हमारे पांव कांपने लगते हैं, किन्तु एक सुन्दर स्त्री को देखने के लिये बरबस आकर्षित हो जाते हैं। यह क्या है? यह उन्हीं आकर्षण विकर्षण शक्तियों का प्रभाव है। वेश्याओं के यहां बदनामी, धन व्यय, स्वास्थ्य नाश के होते हुए भी लोग जाते हैं, अपनी स्त्री के निकट संपर्क में आने की इच्छा रहती है, सुन्दर बच्चों को खिलाने के लिये मन ललचाता है। मित्रों पर सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं, यह सब आकर्षण शक्ति धारा का प्रभाव है। कभी-कभी तो यह शक्ति गजब का काम करती है। एक व्यक्ति अपने स्वतंत्र विचार रखता है, वह अपने विरोधी विचार वाले के पास विरोध करने के लिये जाता है, किन्तु वहां जाकर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ता है कि अपने विचारो को छोड़कर वह दूसरे के विचारों को अपना लेता है और उसी के अनुरूप बन जाता है। कई बार ऐसी घटनायें देखने में आती हैं कि एक व्यक्ति जिस विषय में कुछ भी रुचि नहीं रखता, उस काम के लिये दूसरे व्यक्तियों द्वारा उसे बहका लिया जाता है और वह उस काम में बहुत दिलचस्पी लेने लगता है। दो व्यक्तियों के साथ रहने पर यदि प्रेम सच्चा हो तो यह आकर्षण शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि एक के बिना दूसरे का जीवन कठिन हो जाता है। प्रेमी के विरह में आत्महत्या कर लेना या पति के साथ सती हो जाना इसी आधार पर होता है। इसी प्रकार विकर्षण शक्ति का असर है। जालिम आदमियों की सूरत देखकर डर लगने लगता है, प्रभावशाली व्यक्ति के सामने जाकर कई व्यक्ति ठीक तरह बोल भी नहीं सकते और कुछ का कुछ कहते हैं। अदालतों में हाकिमों के सामने बोलने में कई आदमियों का दम फूलता है। क्रोधियों और रूखे स्वभाव के लोगों के पास से जल्दी ही उठ चलने को जी चाहता है, घृणित कर्म करने वाले और पापियों से दूर रहने की स्वाभाविक इच्छा होती है। विकर्षण शक्ति का गुण अलग हटाना दूर फेंकना है। 
यह तो हुआ दैनिक जीवन में स्वाभाविक शक्ति का स्वयमेव होने वाला प्रभाव। विशेष अवसरों पर विशेष शक्ति द्वारा जानबूझ कर डाला गया असर इससे भिन्न तथा अधिक शक्तिशाली होता है। यह पहले ही कहा जा चुका है कि हमारे अपने बिजलीघर की शक्ति असंख्य अलग-अलग तारों में होकर बह रही है। यदि दो-चार तारों में चलने वाला प्रवाह एक ही तार में चालू कर दिया जाय, तो वह पहले की अपेक्षा अधिक शक्ति सम्पन्न हो जाता है और यदि दस, बीस, पचास, चालीस तारों की शक्ति एकत्रित कर ली जाय, तो उसी संख्या में और भी अधिक बल मिलेगा। तात्पर्य यह है कि मनुष्य की विश्रृंखलित शक्तियों का यदि एकत्रीकरण हो जाय तो वह अत्यधिक प्रभावशाली हो सकता है और उससे आश्चर्यजनक एवं अलौकिक कार्य किये जा सकते हैं। 
मनुष्य की विश्रृंखलित विद्युत शक्ति को एकत्रित करने पर उसके अद्भुत परिणाम होते हैं। सूर्य की धूप चारों ओर फैली रहती है और साधारणतः अपना काम करती रहती है, किन्तु यदि एक आतिशी शीशे द्वारा दो इंच जगह की धूप को एक बिन्दु पर केन्द्रित किया जाय तो कुछ ही सैकण्ड में आग जलने लगेगी और उस आग की शक्ति से विशाल वनों को भस्म किया जा सकता है। साधारण तरीके से किसी में हाथ का धक्का मार दिया जाय, तो कोई ज्यादा चोट न लगेगी किन्तु हाथ को घूंसे की शकल में बनाकर और पूरे जोर से खींचकर किसी के मर्म स्थान में मारें, तो उसे गहरी चोट पहुंचेगी और तिलमिला उठेगा। मानसिक शक्ति की विशेष तैयारी के साथ किये हुए आघात की चोट शारीरिक आघात से कहीं अधिक गहरी होती है। सरकस के पतले तारों पर नाचने वाले और शरीर को गेंद की तरह उछालने वाले नट-नटी यह कहते हैं कि ‘हमने कोई जादू नहीं सीखा केवल मन को एकाग्र करने का अभ्यास किया है। जिस समय लोग तमाशा देख रहे होते हैं उस समय हमारी निगाह और सारी विचार शक्ति अपने कार्य पर एकत्रित होती है।’ एकाग्रता की शक्ति महान है। बिखरी हुई शक्तियों का एकत्रीकरण ही शक्तिपुंज है। कल के मोची, चपरासी और आबारे जिनको पेट भरने के भी लाले पड़े हुए थे, आज दुनियां में तहलका मचा रहे हैं। हिटलर मुसोलिनी स्टालिन के आतंक से सारी पृथ्वी कांप रही है। इन लोगों ने अपनी शक्ति को पहचाना और उसे एकत्रित करके एक ही दिशा में लगाया है। उस दिन नेपोलियन नामक एक लड़का महान एपल्स पर्वत के निकट पहुंचा। वह अनन्त काल से रास्ता रोके पड़ा था। नेपोलियन ने दृढ़तापूर्वक कहा कि तुम्हें मेरे मार्ग में से हटना पड़ेगा, बेचारा एल्पस जड़ पदार्थ था, चैतन्य तत्व की गर्मी कैसे सह सकता था, उसे हटना पड़ा और नेपोलियन के लिये जगह देनी पड़ी। लक्ष्मण ने जब धनुष पर डोरी चढ़ाई तो बेचारा समुद्र घबरा गया और रास्ता देने की स्वीकृति देता हुआ हाथ जोड़कर सामने आ खड़ा हुआ। 
हिन्दू इतिहास पुराणों का पन्ना-पन्ना ऐसी कथाओं से भरा पड़ा है, जिनसे सिद्ध होता है कि मनुष्य अपनी इच्छा शक्ति और एकाग्रता के बल पर दूसरों को शाप, वरदान दे सकता है, उनका भला-बुरा कर सकता है, उनके मन में अपने विचारों को प्रवेश करके इच्छानुसार काम करा सकता है। 

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