परकाया प्रवेश

दूरस्थ व्यक्ति को प्रभावित करना

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जो व्यक्ति तुम्हारे निकट नहीं है और बहुत दूर रहता है उसके लिये भी उपचार करना असंभव नहीं है। दूरी का प्रश्न स्थूल वस्तुओं के लिये है। मिट्टी, लोहे, लकड़ी आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में बहुत प्रयत्न करना पड़ता है। लेकिन हवा बहुत जल्दी एक स्थान से दूसरे स्थान को उड़ जाती है। बिजली की गति हवा से भी कहीं अधिक तेज है। शब्दों की लहरें तो बिजली से भी तेज चलती हैं। जैसे-जैसे सूक्ष्मता आती जाती है वैसे वैसे ही दूरी का प्रश्न घटता जाता है, विचारों की तरंगें तो एक सेकण्ड में पृथ्वी की सात बार परिक्रमा कर सकती हैं। आत्मशक्ति के लिये दूरी की कोई कठिनाई नहीं है, किन्तु इसमें एक नियम का पालन करना आवश्यक है कि जिस समय प्रयोक्ता उपचार करे उसी समय साधक को भी उसे ग्रहण करने की इच्छा से शान्त चित्त होकर बैठना चाहिये। पात्र की बिल्कुल रुचि न होने और प्रयत्न न करने पर भी उसे सहायता पहुंचाना लगभग असंभव है। 
ब्राडकास्टिंग स्टेशन से समाचार या गायन वाद्य आदि की शब्द धारा प्रेरित की जाती है, वह ईश्वर तत्व में मिलकर समस्त विश्व में गूंज जाती है, किन्तु हम उसमें से कुछ भी नहीं सुन सकते। यदि सुनने की इच्छा हो तो एक अच्छा रेडियो यन्त्र प्राप्त करना चाहिये, जिसमें उन शब्द लहरों को पकड़ने योग्य आकर्षक बिजली चलती हो। उस यंत्र की धारा का मुख जिस प्रवाह की ओर किया जायगा, वह उसी के सन्देश सुना सकेगा। दिल्ली, लन्दन, लाहौर, बर्लिन, रोम आदि जिस स्थान के मीटर पर सुई कर दोगे वहीं की शब्द धारा को तुम्हारा रेडियो सुनने लगेगा। अन्य स्थानों के प्रोग्राम भी उसी समय चल रहे होंगे पर वे अपने रास्ते चले जायेंगे और जब तक उन्हें पकड़ने की कोशिश न की जाय तुम्हारे यन्त्र पर कोई हस्तक्षेप न करेगा। ठीक इसी भांति यदि दो व्यक्ति एक नियत समय पर अपनी आत्म शक्ति को एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित करना चाहें और उससे लाभ उठाना चाहें तो वैसा कर सकते हैं। 
किसी रोगी, मानसिक विकार ग्रस्त या दुर्गुणों में फंसे हुए व्यक्ति को तुम अपनी शक्ति से कुछ लाभ पहुंचाना चाहते हो तो सबसे प्रथम इसमें सहयोग देने के लिये उसको रजामन्द कर लो। उसकी इच्छा होने पर ही कुछ किया जा सकता है। यदि वह स्वीकृति दे तो शिखा स्थान के कम से कम दस बाल या हाथ-पांवों की उंगलियों के मुर्दा नाखून अपने पास मंगालो। यह वस्तुयें मुर्दा होने पर भी शरीर का बहुत प्रतिनिधित्व करती हैं और उसके साथ सम्बन्ध स्थापित करने में बड़ी मदद देती हैं। जिस प्रकार मरे हुए केंचुए के शरीर के एक टुकड़े को गीली मिट्टी में दबा दिया जाय तो वह टुकड़ा ही एक जीवित केंचुआ बन जाता है। उसी प्रकार यह दोनों ही वस्तुयें पूर्व शरीर के लिये माध्यम बन जाती हैं। हिन्दू अपने शिखा स्थान के बालों को चोटी के रूप में रखाये रहते हैं ताकि उनके द्वारा कोई व्यक्ति अनिष्ट साधन कर सकें। कहावत है कि मैंने तुझसे चोटी नहीं कटाई है—अर्थात तेरे वश में नहीं हो गया हूं। तान्त्रिक गुरु अपने शिष्यों की चोटी काट लिया करते हैं ताकि उसे अपना इच्छानुवर्ती बना सकें। चीन आदि देशों में बौद्ध तान्त्रिकों की इस बात पर भलीभांति विश्वास किया जाता था कि नाखूनों को मध्यस्थ बनाकर कई मनस्वी किसी का प्राण तक ले सकते हैं इसलिये वहां नाखून बढ़ाये रहने की प्रथा है। आगे चलकर तो बढ़े हुए नाखून सुन्दरता के चिन्ह समझे जाने लगे, चीन की महिलायें अब तक उंगलियों में बांस की नली पहन कर उसके अन्दर अपने नाखूनों को बढ़ाती रहती हैं। शेर आदि के नाखून बालकों के गले में पहनाये जाते हैं। 
आजकल शिखा स्थान के बाल और नाखूनों को काट कर चाहे जहां भले-बुरे स्थान में फेंक दिया जाता है। इससे परोक्ष रूप से हानि हो सकती है। हिन्दुओं में विधिपूर्वक मुण्डन कराने का रिवाज बहुत खोजबीन कर प्रचलित किया गया था। हिन्दू बालकों के बाल जब पहले काटे जाते हैं तो बहुत पवित्रता पूर्वक धार्मिक विधि से यह कार्य होता है और उन बालों को यों ही चाहे जहां नहीं फेंक दिया जाता वरन् सुरक्षापूर्वक किसी पवित्र जलाशय में विसर्जित किया जाता है। अस्तु। 
शिखा स्थल के बाल और नाखून दो व्यक्तियों के बीच माध्यम का काम दे सकते हैं। प्राचीन समय में इन्हीं से काम लिया जाता था। यूरोप के विद्वान्, टेलीपैथी के लिये किसी ऐसे वस्त्र की मांग किया करते हैं, जो उस व्यक्ति के शरीर को छूता रहा हो। इस युग में कैमरे द्वारा खींचा हुआ (हाथ से बना हुआ नहीं) चित्र भी इस कार्य के लिये बहुत उपयुक्त है, किन्तु यदि फोटो प्राप्त न हो सके तो वस्त्र की अपेक्षा बाल या नाखून ही अधिक ठीक हैं। 
जिस समय प्रयोग करना है, वह समय पहले से ही निश्चित कर लेना चाहिये और ठीक समय पर अभ्यास के लिये बैठना चाहिये। यदि घड़ी आदि की सुविधा न हो और वह स्थान विदेश में न हो तो सूर्योदय का समय सर्वोत्तम है। साधारणतः आधी रात के बाद और प्रातः नौ-दस बजे तक का समय इस कार्य के लिये ठीक है। दोनों व्यक्तियों के चित्र या नाखून, केश आदि में से कोई एक या दोनों एक-दूसरे के नगर की दिशा में मुंह करके किसी शान्त और एकान्त स्थान में बैठें। 
प्रयोक्ता को चाहिये कि उन माध्यम वस्तुओं में चैतन्यता और जीवन की भावना करें अर्थात ऐसा विचार करें कि यह चीज मांस पिण्ड की भांति सजीव है और इनके ऊपर जो शक्ति छिड़की जायगी, उसे ग्रहण करके यह अपने पिता के पास तक पहुंचा देगी। पत्थर की मूर्ति में ईश्वर की भावना करने से वह देवताओं जैसा फल देती है। भय और भ्रम की भावना दृढ़ होते ही झाड़ी का भूत दिखाई देने लगता है और उससे डरकर कई बार तो लोग प्राण से हाथ तक धो बैठते हैं। अस्तु। इन वस्तुओं में चैतन्यता की भावना करने पर उनमें एक शक्ति का संचार होने लगता है और जिस शरीर से वे अलग हुई हैं, उसके साथ संबंध स्थापित करने में बड़ी मदद देती हैं। 
आरोग्यता, स्वास्थ्य, आशीर्वाद और शुभकामना से सम्मिश्रित दृष्टि उन वस्तुओं पर डालो। यह मत सोचो कि केवल दृष्टिपात से क्या होगा? कोई विशेष अनुष्ठान या मन्त्र आदि इस क्रिया के लिये नहीं है, तो फिर कैसे लाभ पहुंचेगा। तुम्हें जानना चाहिये कि मन्त्रों के शब्द वास्तव में कुछ नहीं, उनके अर्थ बहुत मामूली होते हैं, कई मन्त्र तो यों ही विचित्र अक्षरों को जोड़कर बने होते हैं, उनकी अद्भुत शक्ति का रहस्य केवल प्रयोक्ता के मनोबल में है। एक सिद्ध तान्त्रिक जिस मन्त्र के बल से मुर्दे को जिला सकता है, उसी मन्त्र को कोई अजनबी आदमी दिन भर चिल्लाता रहे, तो खाक भी असर न होगा। मंत्र और अनुष्ठान केवल प्रयोक्ता के विश्वास को मजबूत बनाने के लिये हैं, ताकि वह अपने मन्त्र पर भरोसा रखे और अविश्वास और संदेह के विचारों को ग्रहण न करे। तुम्हें इस महाविज्ञान का मूल मन्त्र समझा दिया गया है, इसलिये इस बात की आवश्यकता नहीं रही कि खास शब्दावली का ही प्रयोग करो। तुम्हारी पवित्र और अविचल इच्छा शक्ति बहुत उच्चकोटि का अचूक मन्त्र है। फिर भी यदि इच्छा हो तो गायत्री मन्त्र को इस या ऐसे ही किसी अवसर पर निश्चित भावनाओं के साथ प्रयोग कर सकते हो। अनेक प्रकार के मन्त्र रटने या विभिन्न क्रियाओं के अनुष्ठान सीखने-सिखाने में बहुमूल्य समय बर्बाद करना हमें निष्प्रयोजन प्रतीत होता है। 
साधक को नियत समय पर तुम्हारा चित्र या अन्य वस्तुयें लेकर बैठना चाहिये और श्रद्धा के साथ अनुभव करना चाहिये कि जिस व्यक्ति के यह चित्र आदि हैं, उसके द्वारा ठीक इस समय मेरे लिये लाभकारक शक्ति प्रेरित की जा रही है और उसे अपने शरीर एवं मन की आकर्षण शक्ति द्वारा ग्रहण, अपने अन्दर धारण कर रहा हूं। आकर्षण भावना संदेह रहित, नम्रता और एकाग्रता युक्त चित्त से करने की आवश्यकता है। 
यदि साधक नियत समय पर बैठने को तैयार न हो या इसके विरुद्ध हो, तो उसकी इच्छा के प्रतिकूल भी कुछ किया जा सकता है। उसके लिये ऐसा समय चुनना चाहिये, जब वह व्यक्ति अधिक कामों में फंसा न रहकर शान्त चित्त बैठता हो। यदि ऐसे समय का भी पता न लग सके तो प्रातःकाल का ब्राह्ममुहूर्त उत्तम है, ब्राह्म मुहूर्त में किसी के सुधार, विकास या उन्नति के लिये निस्वार्थ या पवित्र हृदय के साथ तुम परमात्मा से सच्ची प्रार्थना करोगे, तो वह व्यर्थ न जायेगी। दयामय प्रभु तुम्हारी टेर सुनेंगे और उसे दुःख के मार्ग से हटाकर कल्याण के पथ पर अग्रसर कर देंगे। सच्ची प्रार्थना में सच्चा बल होता है। 
दूसरों के मन की बात जानना 
मनुष्य के मस्तिष्क में से जो विचार उठते हैं, वे भाप की तरह ऊपर उड़ते रहते हैं। अब इनका रंग रूप यंत्रों द्वारा देखा जाने लगा है। पेरिस के डॉक्टर बेशडुक ने उड़ते हुए विचारों के चित्र खींचे हैं। एक लड़की अपने पाले हुए पक्षी की मृत्यु पर रो रही थी, उसके विचारों का फोटो लिया गया तो, मरे हुए पक्षी का पिंजड़े सहित फोटो आया। एक स्त्री अपने मृत पुत्र के लिये विलाप कर रही थी, फोटो में मरे हुए बच्चे की तस्वीर आई। एक युवक अपनी प्रेमिका के लिये चिन्तन कर रहा था। फोटो लेने पर उसी युवती की तस्वीर खिंच गयी। ऐसे हजारों चित्र अब तक खींचे जा चुके हैं और वे प्रायः सौ-फीसदी ठीक निकले हैं। विलायत में ऐसे यन्त्रों का निर्माण हुआ है, जिसकी सुई बताती है कि अमुक आदमी इतनी शक्ति युक्त और इस प्रकार के विचार कर रहा है। एक दूसरे वैज्ञानिक डॉक्टर ने उस विचार के भी चित्र लिये हैं, जो किसी प्राणी या वस्तु विशेष को लक्ष्य करके नहीं किये जाते। इन भावनाओं के चित्रों ने तो विचारों के स्वरूप के सम्बन्ध में दुनिया को और भी विश्वास करा दिया है। प्रेममयी भावना करते हुए व्यक्तियों के विचार चित्र सुन्दर फूले आकार के बनते हैं। ईश्वर आराधना से कमल के फूल या गुम्बद जैसी तस्वीर आती है। रोष, प्रतिहिंसा तथा क्रोध के चित्र शूल, छुरी आदि की तरह नुकीले तथा तेज धार वाले होते हैं। सदाचार और संतोष की भावनायें हलके नीले रंग की बेलों की तरह फैली होती हैं। काम वासना के विचार नारंगी रंग के धतूरे के फूल की तरह उड़ते हैं। शंका, संदेह और मानसिक अशान्ति का रंग पीला होता है। स्वार्थ पूर्ण और धोखेबाजी से भरे हुए विचार हरापन लिये हुए होते हैं। उपकार और उदारता के विचार जुगनू के प्रकाश की तरह चमकते हैं, विरोध, अवज्ञा तथा तिरस्कार के विचार काले धुंए के रंग के पाये जाते हैं, उदासीनता, निराशा और अविश्वास के विचारों का रंग हलका गुलाबी होता है। यदि कोई शारीरिक कष्ट हो रहा हो तो मस्तिष्क के आस-पास कपासी रंग की चिनगारियां सी उड़ती मालूम होती हैं। विज्ञान द्वारा यह अनुभव परीक्षा की कड़ी कसौटी पर कसे जा चुके हैं और सत्य निकले हैं। विचारों की आकृतियां मस्तिष्क के आस-पास प्रायः तीन-चार फीट तक स्पष्ट होती हैं और इसके बाद धुंधली होने लगती हैं। विचारों और स्वभाव के अनुसार मनुष्य का शारीरिक तेज (Aura) बनता रहता है। 
उपरोक्त बातें खुले हुए नेत्रों से दिखाई नहीं देतीं, उनका परीक्षण बहुमूल्य वैज्ञानिक यंत्रों द्वारा ही हो सकता है, परन्तु जब तुम आत्मिक शक्ति का विकास कर लोगे तब विचारों के स्वरूप चित्र और उनका पूरा तथा खुद बिना किसी यंत्र की सहायता के भी देख सकोगे। योग विद्या के ज्ञाता दूसरों के मन के भावों को भलीभांति जान लेते हैं। 
मैस्मरेजम का तमाशा करने वाले कुछ लोग एक व्यक्ति को निद्रित करके उसके पास में खड़े हुए व्यक्तियों का हाल उस निद्रित द्वारा कहलाते हैं। वह व्यक्ति आंखों से पट्टी आदि बंधी रहने पर भी सबके रंग, रूप, उनके हाथ की वस्तुयें, जेब की चीजें, रुपये पैसों की छाप सन् आदि बताता है। तुमने ऐसे खेल जरूर देखे होंगे और आशा करते होंगे कि इस प्रकार की विद्या ‘परकाया प्रवेश’ पुस्तक के द्वारा अवश्य सीख जायेंगे लेकिन हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि इतनी उच्च कक्षा प्राप्त कर लेना हंसी खेल नहीं है। इसके लिये वर्षों की कड़ी तपस्या चाहिये, तब कहीं सफलता के दर्शन होते हैं। तमाशा दिखाने वाले प्रायः धूर्त होते हैं वे चालाकी से कुछ निर्धारित संकेतों के आधार पर यह बातें बताते हैं। इनके झमेले में पड़ना व्यर्थ है। 
हम सत्य के उपासक हैं और अपने हर एक अनुयायी के लिये आकांक्षा करते हैं कि वह सत्य का उपासक बने। क्योंकि सचाई सदा सचाई रहेगी, उसका भविष्य सुनहरा होगा। झूठी बाजीगरी किसी आध्यात्मिक व्यक्ति को शोभा नहीं देती। वह तो भिखारियों का पेशा है। दूसरों के मन की बात जानने की सच्ची सीमा तुम्हारे लिये इतनी ही है कि यह जान जाओ कि किस व्यक्ति के किस श्रेणी के विचार कितनी शक्ति के साथ उठ रहे हैं और उनमें परिवर्तन, कैसी हलचल हो रही है? दूसरों के मन के गुप्त प्रोग्राम, उनकी निजी बातें, उनकी अव्यक्त इच्छायें तुम नहीं जान सकते। परमात्मा ने उन लोगों को इतनी शक्ति नहीं दी है जो इनको जान कर अनुचित कार्य कर सकते हैं। यह तो उन्हें ही प्राप्त होती है जिनका मन सांसारिक माया मोहों से अत्यन्त ही ऊंचा उठ गया है। दूसरों के मनोगत भावों को जानने के लिये तुम्हें अपने मन को बिलकुल खाली करने का अभ्यास करना होगा। त्राटक और नाद के अभ्यास से एकाग्रता की शक्ति प्राप्त कर चुके हों उनके द्वारा इस कार्य में तुम्हें बहुत सफलता मिलेगी। मन को खाली करने का अभ्यास करने के लिये किसी एकान्त स्थान में अन्धकार के समय जाओ और आंखें बन्द करके आराम के साथ सुखकर आसन मारकर बैठ जाओ। अपने मन के समस्त विचारों को रोककर उसे ब्रह्माण्ड में (मस्तिष्क के भीतर) ले आओ। भावना करो कि इसके अन्दर जितना स्थान है बस वही समस्त संसार है, उसके अतिरिक्त और कोई वस्तु कहीं नहीं यहां तक कि मैं खुद भी कहीं नहीं हूं। इस लोक को बिलकुल शून्य और नीले अन्धकार से युक्त देखने का प्रयत्न करो। आरंभ के दिनों में इसमें पूरी सफलता न मिलेगी, चित्त की चंचलता के कारण उस शून्य ब्रह्माण्ड से मन उचट कर कभी कुछ कभी कुछ देखने लगेगा, पर प्रयत्न करो और उसे रोक-रोक कर उस शून्य नीलाकाश में ही स्थिर करो। नित्य पन्द्रह मिनट से आधे घण्टे तक का अभ्यास पर्याप्त है। यदि दो मिनट तक मन के न उचटने का अभ्यास हो जाय तो भी काम चलाने लायक काफी है। यह समय यदि बढ़ाने लगो तब तो और भी उत्तम है। चूंकि तुम्हारा नाद और त्राटक का अभ्यास पूरा हो चुका है, इसलिये मन को कम से कम दो मिनट खाली रखने में सफलता प्राप्त करने के लिये एक-दो सप्ताह से अधिक प्रयत्न न करना होगा। इतने ही दिनों में काम चलाऊ अभ्यास हो जायगा। 
दूर स्थान से बहुत पतली आने वाली आवाज को जब तुम सुनना चाहते हो तो अपने आस-पास का शोर गुल बन्द कर देते हो और बहुत दत्तचित्त होकर उसी आवाज पर कान लगाते हो, इसी प्रकार दूसरों के मन की बात जानने के लिये पूर्ण शान्ति और एकाग्रता लाने का प्रयत्न करो। जिस आदमी के विचार तुम्हें जानने हैं, उसका मानसिक चित्र अपने शून्य नीलाकाश ब्रह्माण्ड में बनाओ मानो एकान्त स्थान में वही अकेला बैठा है। अब उसकी मानस प्रतिमा के सिर में से उड़ते हुए विचारों का परीक्षण करो। अपने शून्य मन को उस व्यक्ति के मानस चित्र के निकट ले जाओ और कुछ देर वहीं रुक कर देखो कि तुम्हारे मन में क्या विचार आते हैं? इस समय तुम्हारा शान्त मन एक बढ़िया कैमरे की तरह है, जो साफ-साफ चित्र खींचता है। उस समय तुम्हारे मन में जैसे भाव उठें उन्हें उस व्यक्ति के विचार समझना चाहिये जिसकी कि तुमने अपने मनोलोक में धारणा की है। 
प्रारम्भिक अभ्यास में कभी गड़बड़ी भी हो जाती है और अपना मन शून्य न रह कर अपनी वृत्तियों में जाग पड़ता है, ऐसी दशा में दूसरे के विचारों की ध्वनि अपने अन्दर नहीं आने पाती और अपने ही विचार गूंज जाते हैं। इसलिये एक आदमी के विचार जानने के लिये दो-तीन बार प्रयत्न करना चाहिये और कई बार एक से ही जो चित्र आवें उन्हें ठीक समझना चाहिये। शून्य मन में जब भाव उठे वह अपने आराधित व्यक्ति का समझा जा सकता है। 
आरंभ में यह परीक्षण भी शान्त और एकान्त स्थान में ही करना चाहिये, पर कुछ दिन के निरन्तर अभ्यास के उपरान्त जब मानस भूमिका बिल्कुल शुद्ध हो जाती है और मन की ठीक-ठीक स्थिति उस शून्याकाश में होने लगती है, तो चाहे जहां और चाहे जैसी स्थिति में दूसरे की विचारधारा मालूम की जा सकती है। परन्तु स्मरण रहे, इससे केवल इतना ही मालूम हो सकेगा कि यह व्यक्ति किस प्रकार के, किस श्रेणी के और कैसे विचार कर रहा है। तुम उसकी हर बात को खुलासा नहीं जान सकते क्योंकि परमात्मा ऐसी शक्ति हर व्यक्ति को नहीं देता। फिर भी श्रद्धापूर्वक और पवित्र उद्देश्य से इस ओर प्रयत्न करोगे तो बहुत कुछ ‘‘परामानो विज्ञान’’ (Telipethy) की शक्ति प्राप्त कर लोगे। 
ईश्वर आप लोगों को सफलता दें। 

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