परकाया प्रवेश

निद्रित करके प्रभावित करना

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जिन लोगों की दुष्प्रवृत्तियां पुरानी होकर जड़ पकड़ गई हैं और जिनके स्वभाव में कोई बुराई घर कर गयी है, उनके लिये निद्रित करके पर काया प्रवेश करने की आवश्यकता पड़ती है। क्रोध, शोक, अशान्ति, उद्विग्नता, निराशा, मस्तिष्कीय शक्तियों की कमी आदि मानसिक विकारों में तो इस तरीके को खास तौर से काम में लाने की आवश्यकता पड़ती है। 
जिन लोगों ने त्राटक और नाद का ठीक प्रकार से अभ्यास कर लिया है उनके लिये आसान है कि अपनी बेधक दृष्टि के बल पर किसी को तंद्रा में गिरा दें। जिस व्यक्ति पर प्रयोग करना है, उसे अच्छी तरह समझा देना चाहिये कि यह कोई जादूगरी या टोना-टोटका नहीं किया जा रहा है और न कोई ठगी या मायाचार जैसी वस्तु ही है। यह केवल दो आत्माओं का एक प्रेमपूर्ण समझौता मात्र है, जिसके अनुसार उच्च भावनाओं के साथ दोनों एक-दूसरे से कुछ आदान-प्रदान करते हैं। निद्रित करने वाले की न तो कोई बात हेटी होती है और न प्रयोक्ता का कोई रुतबा बढ़ता है। इसलिये साधक को उचित है कि इस प्रयोग में किसी प्रकार की बाधा न डाले और जहां तक हो सके सहयोग करे। मैस्मरेजम करने वालों की चालाकी को ताड़ने के लिये या अपनी दृढ़ता का परिचय देने के लिये कई सज्जन यह हठ करके बैठ जाते हैं कि 'देखें हमें कौन निद्रित कर सकता है?' सचमुच ऐसे दृढ़ निश्चय वालों को परास्त करना बहुत कठिन है। साधारण कोटि में मैस्मराइजर ऐसे मौके पर पस्त हिम्मत हो जाते हैं। परन्तु इस विज्ञान में ऐसी हठधर्मी के लिये कोई स्थान नहीं है। हर मामले में हर जगह उद्धतपन की आवश्यकता नहीं होती। इस पवित्र आकर्षण क्रिया के प्रयोग में साधक को नम्र होना चाहिये और प्रयोक्ता की कृपा तथा अपने हित को ध्यान में रखते हुए इस कार्य में शक्ति भर सहयोग देना चाहिये। 
जिस व्यक्ति पर प्रयोग करना है उसे एकान्त स्थान में आराम कुर्सी पर लिटा दो और सामने एक साधारण कुर्सी पर आप बैठ जाओ। दोनों कुर्सी के बीच में बहुत थोड़ा अन्तर होना चाहिये। साधक को आदेश करो कि वह अपने शरीर को बिल्कुल ढीला रुई की तरह छोड़ दे। किसी अंग पर बिलकुल तनाव या दबाव न रहे। जब वह बिल्कुल इस प्रकार अपने शरीर को ढीला छोड़ दे उसके दांये हाथ की उंगलियों को अपने बांये हाथ में पकड़ लो और उसकी बांयी आंख की पुतली पर अपनी निगाह जमाओ तथा दृढ़ संकल्प करो कि पात्र को गहरी निद्रा आ रही है। साधक को हिदायत करनी चाहिये कि वह बिना पलक मारे एकाग्रतापूर्वक तुम्हारी तरफ देखता रहे। उसे यह भी समझा देना चाहिये कि जब पलक भारी हो जायं और आंखें झपकने लगें तो बलपूर्वक उन्हें खोले रखने का प्रयत्न न करे वरन् यदि पलक बन्द हो रहे हैं तो उन्हें हो जाने दें और अपने मानस लोक में केवल नीले रंग को ही देखता हुआ शान्ति प्राप्त करने की भावना करे। साधारणतः पांच-सात मिनट में ही इस क्रिया से पात्र को नींद आने लगती है। किन्हीं-किन्हीं पर दस-पन्द्रह मिनट में प्रभाव होता है किसी की कठोर मानस भूमिका होने के कारण यदि निद्रा आने में देर लग रही है तो प्रयोक्ता को अधीर नहीं होना चाहिये वरन और भी अधिक साहस के साथ शक्तिपात करना चाहिये। ''नेत्रों के द्वारा मेरी आत्म शक्ति साधक के शरीर में प्रवेश करती जा रही है।'' प्रयोक्ता द्वारा यह भावना जितनी ही अधिक विश्वास और दृढ़तापूर्वक की जायगी उतनी ही अधिक सफलता मिलेगी। 
पात्र जब तंद्रा में गिर जायगा तो उसके अंग बिल्कुल ढीले हो जायेंगे। जैसे सोते हुए या मुर्दे के अंग ढीले होकर इधर-उधर लुढ़क जाते हैं, उसी प्रकार उसके भी ढल सकते हैं। इसलिये हिफाजत के साथ उसकी गरदन या हाथों को इस प्रकार रखने की व्यवस्था कर देनी चाहिये कि उसको निद्रित अवस्था में कोई हानि या तकलीफ न होने पावे। उपरोक्त अवस्था को निद्रा न कहकर तंद्रा कहना चाहिये क्योंकि इस समय तुम्हारी शक्ति ने उसके मानस स्थान में प्रवेश करके उसके शरीर पर अपना कब्जा जमा लिया है। फलस्वरूप साधक की अपनी साधारण चेतना लुप्त सी हो गयी है। उपरोक्त अभ्यास में इतनी गहरी निद्रा नहीं आयेगी कि उससे किस अंग का ऑपरेशन किया जा सके। इतनी गहरी निद्रा लाने के लिये ऊंचे अभ्यास हैं। हम जरूरत नहीं समझते कि इस पुस्तक द्वारा सर्व साधारण तक उन क्रियाओं को पहुंचा दिया जाय और हर कोई उनका उपयोग करने के लिये टांग अड़ावे। इस प्रयोग द्वारा लाई गयी निद्रा में पात्र एक प्रकार की तंद्रा-बेहोशी में पड़ा हुआ है, मर नहीं गया है। इसलिये उन लोगों को सावधान किया जाता है, जो निद्रा की गहरेपन की परीक्षा लेने के लिये चिकोटी काटते या सुई आदि चुभोते हैं। कोई व्यक्ति यदि निद्रित व्यक्ति के साथ ऐसी हरकत करेगा तो उसे भारी नुकसान पहुंचावेगा। निद्रित अवस्था में तो पात्र को अधिक से अधिक आराम देने की और मौसम के अनुसार पंखे आदि की व्यवस्था करनी चाहिये। 
प्रयोग करते समय पात्र के हाथों को प्रयोक्ता ने अपने हाथों में पकड़ रखा था। तन्द्राग्रस्त हो जाने पर उन्हें छोड़ कर उसी की गोद में रख देना चाहिये। अब शक्ति प्रवेश की भावना के साथ पुतली पर बेधक दृष्टि डालने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि इस क्रिया का जो उद्देश्य था, वह पूरा हो चुका। तुम्हारी शक्ति पात्र के शरीर में भरपूर प्रवेश करके उस पर अपना अधिकार जमाये हुए है। अब तुम्हें वह काम करना है, जिससे तुम्हारे शुभ संकल्प उसके सुप्त मन पर गहरे अंकित हो जायं और वह उन्हें अपने अन्दर धारण कर लें। इस बात में तो कोई संदेह ही नहीं है कि किसी स्थान पर कोई वस्तु रख देने पर, उससे पूर्व की रखी हुई वस्तु स्वतः ही हट जाती है। जैसे किसी गिलास में पानी भर दिया जाय, तो उससे पूर्व उसमें जो हवा भरी हुई थी, वह अपने आप हट जायगी। शुभ विचार भर जाने पर दुष्प्रवृत्तियां अपने आप हट जाती हैं। उसी प्रकार तुम्हारी मानसिक सहायता पहुंचने पर उसकी मानसिक शक्तियों को बल मिलेगा और वे जागृत होकर अपनी उन्नति करती हुई ठीक प्रकार से काम करती हुई दिखाई देगी। 
अब गत अध्याय में बतायी हुई प्रेम दृष्टि को उसी भांति पन्द्रह मिनट तक समस्त शरीर पर डालना चाहिये और इसके पश्चात् उसी मन्त्र को गुनगुनाते हुए सिर पर कम्पन देने चाहिये। कम्पन की पूरी क्रिया 'प्राण चिकित्सा विज्ञान' के पृष्ठ 44 पर सविस्तार दी हुई है। हाथ इस प्रकार कुछ देर तक लगातार कम्पित रहते हैं मानों विद्युत गति या किसी मन्त्र से उसे थरथराया जा रहा है। यही कम्प उपचार है। किसी पतले बेंत को एक बार जोर से फटकार दो, तो वह कुछ देर तक कंपकंपाता रहता है। घड़ियाल में हथौड़ी लगाने पर घण्टा शब्द होता है और तदुपरान्त वह कुछ क्षण कांपती रहती है। यही क्रिया हाथ की होनी चाहिये। कलाई से लेकर कोहनी तक की पेशियों को कड़ी करके थरथराहट पैदा करने से यह कम्पन आ सकता है। उपचार करने से पूर्व एक सी गति से बिना थके हुए हाथ से कुछ देर कंपकंपाते रहने का अभ्यास करना चाहिये। शिर के ऊपर कम्पन देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि हाथ की थरथराहट केवल बालों को ही थोड़ा सा स्पर्श करे वह इतने निकट से न होनी चाहिये कि शरीर की चमड़ी तक हाथ का आघात पहुंचे और पात्र की निद्रा भंग हो जाय। यह मार्जन साधारणतः दस मिनट तक देना काफी है। 
तंद्रा की अवस्था प्रायः पन्द्रह मिनट से लेकर आधे घण्टे तक रहती है। कभी-कभी गहरा असर हो जाता है, तो इससे भी अधिक समय तक बनी रहती है। मामूली दशा में पन्द्रह मिनट प्रेम दृष्टि डालने और दस मिनट कम्प करने के उपरान्त उसे जाग्रति वापस आने लगती है। कभी-कभी कम्पनों के समय में ही वह जागने लगता है। जब स्वेच्छापूर्वक उसे चेतना वापस आ रही हो तो जाग जाने देना चाहिये और क्रिया को वहीं समाप्त कर देना चाहिये, किन्तु यदि कम्प पूरे होने पर भी वह न जागे तो पांच मिनट और उसी दशा में पड़े रहने देना चाहिये और आधा घण्टा पूरा होते ही सिर से पैरों की तरफ 'पास' करने चाहिये। पास करने का सीधा सादा कायदा यह है कि दोनों हाथों की उंगलियों को खोल दो और उन्हें बराबर-बराबर इस प्रकार रखो कि हथेलियां पात्र के पैरों की तरफ रहें। अब दोनों हाथों को साथ-साथ नीचे की ओररोगी के शरीर से तीन इंच के फासले पर नीचे की ओर खिसकाते लाओ और पैरों के पास ले जाकर उन्हें एक और झटकार दो। मानो तुम्हारे हाथ पानी में भीग गये थे और तुमने उसकी बूंदों को अलग फेंक दिया। इस प्रकार कई बार पास करने से तुम्हारी शक्ति, जो पात्र के शरीर में भरी हुई है, निकल जायगी और वह जाग जायेगा। किन्तु यदि इस पर भी न जागे तो समझना चाहिये, उसे स्वाभाविक निद्रा आ गयी है। इस खींच-तान से थककर वह साधारण नींद में सो गया है। ऐसी दशा में न तो चिंतित होना चाहिये और न बलात् जगाने का प्रयत्न करना चाहिये। वह कुछ देर में अपने आप अपनी नींद पूरी करके जाग पड़ेगा। 
यह प्रयोग एक-दो दिन करके ही काम पूरा नहीं हो जाता। एक सप्ताह तो परीक्षा के तौर पर ही लगाना चाहिये। इतने समय में बहुत कुछ सुधार हो जायगा और पीड़ित इसकी ओर अधिक आकर्षित होता जायगा। तीन सप्ताह में बड़े-बड़े कठिन और पेचीदा स्थितियों का सुधार हो जाने के बीसियों अनुभव हमने स्वयं किये हैं। 

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