परकाया प्रवेश

सोते हुए आदमी पर प्रयोग

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सोते हुए आदमी पर प्रयोग करने की आवश्यकता उस स्थिति में होती है, जब वह इस कार्य में कोई सहयोग नहीं देना चाहता या नहीं दे सकता। इसी प्रकार वे जिद्दी और क्रूर स्वभाव के लोग होते हैं जो अपने ऊपर किसी बात का किया जाना अपनी शान के विरुद्ध समझते हैं। अपने को बहुत बड़ा समझने वाले लोगों के मन में कोई बात बिठाने का प्रयत्न उसे करना पड़े, जिसे वे छोटा समझते हैं, तब भी सुप्त अवस्था का प्रयोग ही ठीक रहता है। दूध पीते बालकों के लिये भी यही उपाय उचित है। 
सोया आदमी किस अवस्था में हो इसका कोई प्रतिबन्ध नहीं है और हो भी नहीं सकता। क्योंकि यदि वह नियमपूर्वक स्वेच्छा से प्रयोग में शामिल होता तो सुप्त अवस्था खोजने की नौबत ही न आती, वह जैसे भी सोया हुआ है सोने दीजिये। यदि कपड़े से बिल्कुल ढंका हुआ है तो उस ओर का अन्तिम भाग जिस ओर कि तुम बैठे हुए हो थोड़ा-सा खोल दो। जैसे तुम सिर की ओर बैठना चाहते हो तो सिर के बाल और पैरों की ओर बैठना चाहते हो तो पैरों के तलवे थोड़े से खोल दो। इससे कार्य में आसानी रहेगी। यदि इस प्रकार अन्तिम अंग खोलने की सुविधा न हो सके तब भी काम चल सकता है, पर सफलता अधिक परिश्रम और अधिक विलम्ब से मिलती है। 
जिस आदमी पर जिस समय प्रयोग करना है उसके सोने की साधारण अवधि मालूम करो और उसका आठवां भाग आदि अंत का भाग त्याज्य समझो। जैसे वह व्यक्ति आमतौर से रात को छः घण्टे सोता है, तो पौन घण्टा आरम्भ में और पौन घण्टे के अन्तिम समय में उसे न छेड़ना चाहिये। दोपहर को वह दो घण्टे सोता है, तो पंद्रह मिनट आदि और पन्द्रह मिनट अन्त में उसके ऊपर कोई प्रयत्न नहीं करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से नींद में जो गर्मी बढ़ेगी, उससे उसकी नींद उचट सकती है। 
असुविधा न हो तो दो गज के फासले पर बैठना ठीक है, इससे निकट रहना और भी अच्छा है। किन्तु यदि अधिक दूर रहना अभीष्ट हो तो अधिक से अधिक दस गज की दूरी तक यह प्रयोग हो सकता है। अधिक दूरी रहने की दशा में पानी में एक भीगे हुए सूत्र को सोने वाले के उन वस्त्रों से सम्बन्धित कर देना चाहिये, जो उसके शरीर को छूते हैं। इस सूत्र का दूसरा सिरा प्रयोक्ता के पास तक पहुंचना चाहिये, इस सूत्र के द्वारा पांच गज दूर रहते हुए भी शरीर से सम्बन्ध हो जाता है। यदि दो गज के भीतर ही बैठना हो, तब इसकी विशेष आवश्यकता नहीं है। 
प्रयोग के लिये खुली हुई जमीन पर कभी मत बैठो, क्योंकि पृथ्वी की आकर्षण शक्ति तुम्हारे बढ़ाये हुए बल को खींच कर छूंछ कर देगी। हमेशा कुर्सी, चौकी, तख्ता या आसन आदि बिछाकर बैठना चाहिये। मुंह पात्र की ओर रहे। यदि भीगे हुए सूत्र का प्रयोग करना पड़ रहा है तो उसका अन्तिम भाग अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी में दबाये रहो। अब तुम्हें यानि श्वांस-प्रहार से काम लेना होगा। उसकी विधि इस प्रकार है— 
मेरुदण्ड को सीधा रखकर बैठो और मुंह अच्छी तरह बन्द कर लो, ताकि उसमें ही सांस का आना-जाना न हो। अब नाक द्वारा सांस लेने छोड़ने की क्रिया जल्दी-जल्दी करो। मानों धक् धक् करता हुआ रेल का इंजन चल रहा हो। इस प्रकार सांस पूरी ली और छोड़ी नहीं जा सकेगी, वरन् थोड़ी-सी वायु भीतर पहुंचेगी और फौरन झटके के साथ निकाल दी जायेगी। यह सांस लेने छोड़ने की क्रिया जितनी जल्दी हो सके करनी चाहिये। करीब आधी मिनट इसे करने पर वायु की रगड़ से फेफड़े तथा शरीर के अन्दर भीतरी अंगों में घर्षण होने लगेगा। दो वस्तुयें तेजी से रगड़ने पर विद्युत प्रवाह तेजी से बहने लगता है। यदि तुम अपनी हथेलियों को कुछ देर तक बराबर रगड़ोगे तो वे गरम हो जायेंगी। इसी प्रकार श्वांस की रगड़ से मस्तिष्क, कण्ठ, फेफड़े, हृदय आदि अंगों में लगेगी इससे इनके अन्दर रहने वाली साधारण विद्युत और गुप्त दैवी शक्तियां उत्तेजित होकर वायु के साथ मिल जावेंगी। इस वज्र यानी श्वास प्रहार के साथ मन ही मन ‘हूं’ शब्द दुहराना चाहिये। महर्षि नागार्जुन ने शरीर के अन्दर विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न प्रकार के होने वाले शब्दों का ज्ञान प्राप्त करके बताया है। इस ‘प्रहार’ के समय मांसपेशियों और स्नायु तन्तुओं की घिसावट से एक प्रकार की सूक्ष्म आवाज आती है जो ‘हूं’ शब्द से मिलती-जुलती होती है। यदि इसी शब्द को मन में मन्त्र की तरह जपा जाय तो वह ध्वनि अधिक तीव्र होकर श्वास को विशेष शक्तिशाली बना देती है। इस घर्षण के समय मन की भावनायें आत्मशक्ति को चैतन्य करने पर केन्द्रित रहनी चाहिये। 
प्रायः आधी मिनट पर श्वांस घर्षण करने के बाद लम्बी श्वांस खींचनी चाहिये जितनी अधिक श्वांस पेट में भर सको भर लो। अब फूंक मारने के लिये मुंह को सकोड़ो। बहुत ही पतली फूंक यदि दूर तक फेंकना चाहो तो यह कार्य पूरा मुंह खोलने से नहीं हो सकता वरन् इसके लिये होठों को ऐसे सकोड़ना पड़ेगा जैसे वंशी या सीटी बजाने के लिये सकोड़ते हैं। कांच की छोटी शीशी को होठ के पास ले जाकर फूंक मारने के लिये तैयार करो और धीरे धीरे पतली फूंक उसके खुले अंग को लक्ष्य करके छोड़ना शुरू करो। यह कार्य बहुत ही धीरे होना चाहिये और पेट की पूरी हवा खाली करने में आधा मिनट का समय लगाना चाहिये। यदि यह कार्य तुम्हें ऐसी जगह बैठकर करना पड़ रहा है, जहां पात्र के और तुम्हारे बीच में कोई पर्दा या दीवार आदि की रोक पड़ती है तो मुट्ठी में रखे हुए सूत्र पर इस प्राण वायु को छोड़ दो। इस वज्र यानी श्वांस प्रहार के करते समय भावना करते जाना चाहिये कि ‘‘मेरा यह शक्तिशाली प्राणवायु परम पवित्र प्रेम के विचारों को लेकर पात्र के मस्तिष्क में प्रवेश कर रहा है। यह उसके जीवन को उच्च और सुन्दर बनाने के उद्देश्य से अनुकूल वातावरण उत्पन्न करता है। बसन्त जैसे पुराने शक्तिहीन पत्तों को पेड़ों से गिरा कर नवीन कोपलें उत्पन्न करता है वैसे ही जीवन रस मेरा यह प्राण वायु इस व्यक्ति में संचरित करता है। इससे बुरी आदतें और सब प्रकार की कमजोरियां नष्ट हो रही हैं और उनके स्थान पर दिव्य गुणों का विकास हो रहा है।’’ इस मन्त्र के साथ दुर्गुणों के नष्ट होने और उसके विरोधी उत्तम स्वभाव के उदय होने की भी भावना विशेष रूप से करनी चाहिये जिसके खास उद्देश्य से यह प्रयोग किया गया है। 
साधारणतः पन्द्रह-बीस मिनट यह पूरा प्रयोग करना चाहिये। जिनको श्वांस प्रहार का पूरा अभ्यास नहीं है, उन्हें तो आधे घण्टे से अधिक कदापि न करना चाहिये, क्योंकि अभ्यास न होने पर भी अधिक परिश्रम करने पर अपने शरीर का भय रहता है। 
यदि सुविधा हो तो सुप्त मनुष्य के सिरहाने खड़े होकर उसके मस्तिष्क पर प्रेममय दृष्टिपात करना चाहिये और सुधार का उपरोक्त मंत्र उसके ऊपर अपने विचार बल द्वारा प्रेरित करना चाहिये। छोटे बालकों के लिये सूत्र आदि की कोई आवश्यकता नहीं है। उनके दिव्य गुणों का विकास करने के लिये दस-पन्द्रह मिनट शुभकामनाओं के साथ हलका श्वांस प्रहार और प्रेममय दृष्टिपात करना पर्याप्त है। 
उपरोक्त साधन में सूत्र आदि का प्रयोग देखकर कोई सज्जन भ्रम कर सकते हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिये, यह अन्धविश्वास या ठगी की कोई चाल नहीं है, वरन् व्यक्तिगत विद्युत (Personal Magnetism) की एक शास्त्र सम्मत क्रिया है। इसकी सचाई और शक्ति की हर कोई व्यक्ति परीक्षा कर सकता है। इसका ठीक प्रकार उपयोग करने के उपरान्त अभ्यासियों को हमारी ही भांति इस पर पूरा विश्वास करने के लिये बाध्य होना पड़ेगा। 

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