परकाया प्रवेश

हिप्नोटिज्म

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पिछले पृष्ठों पर मैस्मरेजम की परिधि के अन्दर योग और तन्त्र की कुछ अनुभूत क्रियायें बताई जा चुकी हैं, मैस्मरेजम के संबंध में लगातार पन्द्रह वर्ष की खोज करने के उपरान्त उसकी सीमा के अन्दर और कुछ हमें प्राप्त नहीं हुआ है, परन्तु हम जानते हैं कि पिछले पृष्ठों को पढ़कर अनेक जिज्ञासु संतुष्ट नहीं हुए होंगे। उन्होंने मैस्मरेजम के नाम पर अनेक बाजीगरी के खेल देखे होंगे और वे कदाचित ऐसा ही कुछ जानने की इस पुस्तक से भी आशा करते होंगे। लड़कों को बेहोश करना, उनसे भूत, भविष्य की बातें पूछना, भूत-प्रेतों के सन्देश, गुप्त बातें बताना आदि तमाशे और त्रिकालदर्शी अंगूठी, सिद्ध दर्पण आदि की शिक्षा हमने नहीं दी है, क्योंकि हम जानते हैं कि यह व्यर्थ की बातें हैं और इनसे किसी का कुछ लाभ नहीं। 
इन कार्यों में हाथ की सफाई या बाजीगरी होती है। हिप्नोटिज्म की सूचनाओं से भी कई प्रकार के विचित्र तमाशे दिखाये जाते हैं। हिप्नोटिज्म को हम देहाती बोली में ‘धोंस’ कहेंगे। इसके लिये कोई अभ्यास नहीं करना पड़ता। अपनी मुख मुद्रा, कपड़े, रहन-सहन आदि ऐसा रखते हैं, जिससे दूसरा समझे कि यह अवश्य ही कुछ जादू जानते हैं। उनकी बोली, बातचीत का ढंग, हाथ की सफाई के साथ मार्जन के ढंग, इन बातों को कोई भी होशियार आदमी खुद अपने आप दस-पांच दिन के अभ्यास से ठीक कर सकता है। यह ‘धोंस’ कमजोर तबियत के आदमियों पर ही चलती है। वे लोग उस आदमी को तमाशे के लिये चुनेंगे, जो सीधा-सादा कमजोर, आज्ञाकारी, डरपोक तबियत का हो। बालक और स्त्रियों को खास तौर से ऐसे खेलों के लिये चुना जाता है। मजबूत दिल का आदमी इन चकमों में नहीं आ सकता। 
हिप्नोटिज्म करने वाले लोग उससे कहते हैं कि ‘‘अंगूठी (आदि जो भी वस्तु हो उसकी) ओर देखो, थोड़ी देर में तुम बेहोश हो जाओगे।’’ उसके अन्तर्मन ने यदि इस बात को स्वीकार कर लिया तो सचमुच ही वह बेहोश हो जायगा और जैसे कोई आदमी सोते समय अपनी इच्छा से स्वप्न देखता है, वैसे ही इस बेहोशी में हिप्नोटिस्ट की आज्ञानुसार स्वप्न देखता है। इस नींद में वही स्वप्न दिखाई पड़ते हैं, जिन्हें उसे दिखलाया जाय। साधारणतः वह आदमी उन्हीं बातों को कहता है, जिन्हें हिप्नोटिस्ट कहलवाना चाहता है। हां, कभी-कभी सैकड़ों में से एक-आध को निरन्तर अभ्यास के बाद अधिक गहरी निद्रा आने लगती है और उसका सात्विक मन यदि उस समय लग जाय तो कुछ बहुत गुप्त और सच्ची बातें बता सकता है, पर यह हमेशा हर आदमी पर नहीं हो सकती। जिस आदमी का कड़ा दिल हो और निश्चय करले कि मेरे ऊपर असर नहीं हो सकता, उस पर किसी की हिप्नोटिज्म नहीं चलेगी। दूसरे इनसे लाभ बहुत ही कम है और बेहोश करने वाले तथा होने वाले की हानि अधिक होती है। इसलिये इस विषय पर हम अधिक प्रकाश नहीं डालते, क्योंकि इसके तरीके बहुत ही आसान होने की वजह से हर कोई आदमी कर सकता है और तमाशा दिखाने का लोभ न संभाल सके तो व्यर्थ ही अपने तथा दूसरों के समय की बर्बादी, हानि और भ्रम प्रचार के कार्य में लग जायेंगे। इससे सर्व साधारण का अहित ही हो सकता है। 

उपसंहार 

इस पुस्तक को आद्योपान्त पढ़ लेने के बाद पाठक ‘‘परकाया प्रवेश विज्ञान’’ के सम्बन्ध में बहुत कुछ जान चुके हैं। अधिकारी व्यक्ति इसमें बताये हुए अभ्यासों को करेंगे तो निश्चय ही वे अपने उद्देश्य में सफल होंगे। सदुद्देश्य से ही इसका प्रयोग दूसरों पर करना चाहिये, यह हम बार-बार दुहराते रहे हैं, अनुचित स्वार्थ साधन के लिये यदि इसका प्रयोग किया गया तो याद रखें, लाभ की अपेक्षा हानि अधिक होगी। 
जो लोग मैस्मरेजम सीखना चाहते हैं उन्हें इन अभ्यास के द्वारा बहुत लाभ होगा। मैस्मरेजम की पूरी क्रिया इसके अन्दर है, वरन् उससे भी कुछ अधिक है। हमारी ‘प्राण चिकित्सा विज्ञान’ पुस्तक मैस्मरेजम द्वारा रोग निवारण का पूरा तत्व ज्ञान है, उसमें डॉक्टर की ही बतायी हुई विधियां ही नहीं हैं, वरन अन्यान्य देशों के प्रमुख अध्यात्म चिकित्सकों की विधियों का भी समन्वय है। इस प्रकार यह दोनों पुस्तकें मिल कर मैस्मरेजम का परिपूर्ण विज्ञान बन जाता है। अधिकारी साधक थोड़े समय तक इनका अभ्यास कर देखें। वे इसमें अपना बहुत लाभ पायेंगे और दूसरों की संतोषजनक सेवा कर सकेंगे। 
इसमें ऐसे प्रसंग नहीं दिये गये हैं जिनसे अभ्यास करने वाले या जिस पर प्रयोग किया जाय उसको कोई हानि पहुंचे। इसलिये यह प्रणाली निरापद है। मैस्मरेजम के नाम पर जो बाजीगरी और धूर्तता के खेल दिखाये जाते हैं, उन प्रसंगों को भी व्यर्थ समझ कर छोड़ दिया गया है। इसलिये शायद कोई जिज्ञासु जो उन तमाशों के लिये ही मैस्मरेजम सीखना चाहते हों, निराश होंगे। उनकी इच्छा पूर्ति इससे नहीं होगी, उन्हें किसी बाजीगर को पैसे ठगाने होंगे और जो कुछ सीखेंगे या तो अपने गुरु की भांति लोगों को भ्रम में डालेंगे या अपनी मूर्खता पर पछतायेंगे। हम स्वयं ऐसी ही खोजबीन के सिलसिले में अपने कीमती तीन वर्ष और सैकड़ों रुपया गंवा चुके हैं और स्टेजों पर बड़े-बड़े करिश्मे दिखाने वाले और अपने खेलों से देखने वालों को दंग कर देने वालों से जो कुछ सीखा उसे बिल्कुल बेबुनियाद देखकर अपने अज्ञान पर पछताये। तमाशों में प्रायः मैस्मरेजम का शतांश भी प्रयोग में नहीं आता। हर बात में हाथ की सफाई, चालाकी और लोगों की दृष्टि तथा मन को चकमे में डालने की क्रिया होती है। इसका जो असर देखने वालों पर पड़ता है वह बहुत बुरा होता है। वे भ्रम में पड़ते हैं, वास्तविक ज्ञान से वंचित होते हैं और भविष्य में किसी धूर्त द्वारा ठगे जा सकते हैं। इसलिये हम अपने पाठकों को उन तमाशों के असत्य प्रलोभनों से रोकते हैं और सलाह देते हैं कि वे आत्म शक्ति को बढ़ावें, उसकी शक्ति से ही उन्हें वास्तविक लाभ होगा। 

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*समाप्त*

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