गीत संजीवनी-9

मन रे बन जा कुशल

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मन रे बन जा कुशल किसान।
मानव जीवन खेत है उर्वर- अवसर को पहचान॥

भूमि बहुत बढ़िया दी प्रभु ने- इसको खेत बना ले।
फसल समय पर बोये काटे- जो चाहे सो पा ले॥
इस सुविधा का लाभ उठा ले- मत बन तू नादान ॥

आदिशक्ति के अनुशासन से- घेरा बन्दी कर ले।
इससे फसल सुरक्षित होगी- श्रद्घा भीतर भर ले॥
यम भी इसको तोड़ न पाते- कहते सभी सुजान ॥

गुरु ने जो उपदेश दिये हैं- उनको बीज बना ले।
अपने खेत में बोकर उनको- फसल श्रेष्ठ उपजाले॥
इसमें उपजें ऋद्धि,सिद्धियाँ- ज्ञान और विज्ञान॥

खेत भले हो सबसे अच्छा- बीज श्रेष्ठ हो भाई।
खर- पतवार उगेगा निश्चित- करते रहो निदाई॥
अगर निराई से चूका तो- भोगेगा नुकसान॥

नर तन रूपी खेत न हरदम- तेरे पास रहेगा।
आज नहीं तो कल दाता ही- वापस यह ले लेगा॥
लगन लगाकर फसल उगा ले- बात हमारी मान॥

मुक्तकः-

फसल उगाई बहुत मनुज ने- फिर भी रहा विपन्न।
यदि जीवन की फसल उगायें- तो हो जायें धन्य॥

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