गीत संजीवनी-9

मुसीबत कितनी ही आये

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मुसीबत कितनी ही आये, नाम मत रुकने का लेना।
हृदय में रखना दृढ़- विश्वास, ज्योति कुछ दुनियाँ को देना॥

पंथ है माना पथरीला, हजारों बीहड़ बाधायें।
पड़ेंगे दुर्गम नदी पहाड़, और तूफानी झंझायें॥
बिजलियाँ तुम्हें डरायेंगी, कड़क कर शोर मचायेंगी।
प्रलय घन सी छा जायेंगी, हजारों तुम पर विपदायें॥
पाँव में छाले पड़ जायें, नाम मत झुकने का लेना।
न मन में होना कभी- निराश, ज्योति कुछ दुनियाँ को देना॥

छोड़कर पीछे, निकल गये, तुम्हारे साथी सब आगे।
रहे तुम अब तक सोये पड़े, नींद से सखे! न क्यों जागे॥
अगर अब भी रह जाओगे, बहुत पीछे पछताओगे।
तीव्र गति से मंजिल की ओर, अभी भी अगर नहीं भागे॥
तुम्हें कितना ही ललचायें, नाम मत रुकने का लेना।
रहे उज्ज्वल भविष्य की आश, ज्योति कुछ दुनियाँ को देना॥

जिन्दगी एक कठिन संग्राम, विजय इसमें उसने पाई।
रहा जिसको ‘‘आराम- हराम’’ बिना श्रम नींद नहीं आई॥
उठो, कुण्ठाओं को छोड़ो, समय के साथ चलो दौड़ो।
अगर पग ढीला छोड़ दिया, रोक देगी कोई खाई॥
पड़े कितनी ही विपदायें, हार का नाम नहीं लेना।
बने तब अजर- अमर इतिहास, ज्योति कुछ दुनियाँ को देना।

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