गीत संजीवनी-9

यदि तुम अपना मन धो लो

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यदि तुम अपना मन धो लो, यह जग निर्मल हो जाये।

जो स्वयं बहुत निर्बल है, औरों को क्या बल देगा।
गिर पड़े स्वयं, कैसे वह, गिरतों को थाम सकेगा॥
औरों को पार लगाये, हो अगर प्रबल अभिलाषा।
जब स्वयं तैरना सीखो, तो पूर्ण हो सके आशा॥
नव गतिविधियाँ अपना लो, तो नवल सृजन हो जाये॥

तुम सबको अपनालो तो, सब तुमको अपनायेंगे।
तुम नहीं डरो बाधा से, सब निर्भय हो जायेंगे॥
इच्छा हो- सभी सुखी हों, तो गीत खुशी के गाओ।
यदि करना है दीवाली, आगे बढ़ दीप जलाओ॥
तुम आगे चलो अगर तो, पीछे सारा जग आये॥

यदि विश्वक्रान्ति वांछित हो, तो स्वयं प्रथम आहुति दो।
पहले निज चरण बढ़ाओ, कुण्ठाओं को जागृति दो॥
पहले विकार मेटो तो, जग के विकार का क्षय हो।
पलटो विचार की धारा, मानव की विश्वविजय हो॥
निर्माण स्वयं का कर लो, तो युग निर्मित हो जाये॥

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