गीत संजीवनी-9

माँ बस यह वरदान

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माँ बस यह वरदान चाहिए, अपनेपन का भान चाहिए।
जीवन पथ जो कण्टकमय हो, विपदाओं का घोर वलय हो।
किन्तु कामना एक यही बस, प्रतिपल पग गतिमान चाहिए॥
माँ बस यह..........॥

हास मिले या त्रास मिले, विश्वास मिले या फाँस मिले।
गरजे क्यों न काल ही सन्मुख, जीवन का अभिमान चाहिए॥
माँ बस यह..........॥

जीवन के इन संघर्षों में, दुःख कष्ट के दावानल में।
तिल- तिलकर तन जले न क्यों फिर, होठों पर मुस्कान चाहिए॥
माँ बस यह..........॥

कण्टक पथ पर गिरना चढ़ना, स्वाभाविक है हार जीतना।
उठ- उठकर हम गिरें, उठें फिर, पर गुरुता का ज्ञान चाहिए॥
माँ बस यह..........॥

स्वार्थ भाव का क्षण- क्षण क्षय हो, निज पीड़ा का कभी न भय हो।
जल- जल कर जीवन दूँ जग को, बस इतना सम्मान चाहिए॥
माँ बस यह..........॥

मुक्तक-

माँ श्रेष्ठ आचरण हों, वह भक्ति हमें दे दो।
हम स्वाभिमान से जिएँ, वह शक्ति हमें दे दो॥
बाधाओं व व्यवधानों से, घबराएँ हम नहीं माँ।
आदर्श, आस्थाओं में, अनुरक्ति हमें दे दो॥
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