गीत संजीवनी-7

नौजवान देश के

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नौजवान देश के, शक्तिमान देश के।
प्राणवान देश के, कीर्तिमान देश के॥

तुम अतीत के शिखर, वर्तमान हो प्रखर।
और तुम भविष्य के, शिल्पकार हो सुघढ़।
रामकाज के लिए, हनुमान देश के॥

ऋषियों के ब्रह्मानन्द, दयानन्द, विवेकानन्द।
मैत्रेयी, गार्गी, अपाला, घोषा के मधुर छन्द।
तुम शिवा, भगतसिंह, शान हो देश के॥

फिर क्यों माता हो निराश, क्योंकि तुम हो उदास।
विकृतियों विघटन ने, खड़ा कर दिया विनाश
पहिचानों अपने को, महाप्राण देश के॥

साधना सुसंगठन, सृजन शक्ति का वरण।
अर्जुन सा- दिव्य लक्ष्य, भेदने बनो सुरक्ष।
चलो संगठित करें, नौजवान देश के॥

‘जगत्गुरू’ हम कहलाएँ, इतिहास को फिर दोहराएँ।
‘सोने की चिड़िया’ हो, वैभव फिर से बढ़िया हो।
जाग जायें हर जवान, प्रिय किसान देश के॥

मुक्तक-

ऋषियों जैसी आस्था, वीरों जैसा काम।
लेकर तरुणाई चले, उन्नति हो अविराम॥

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