गीत संजीवनी-7

धर्म ध्वजा फहरे

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धर्म ध्वजा फहरे, गगन में केसरिया लहरे॥

जीवन जगती, मातृभूमि के, लिए बनें बलिदानी।
जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति के, रहें सदा अभिमानी॥
त्याग, तपस्या के बल पर हम, आगे बढ़ते जायें।
सागर, अवनि, शिखर, अम्बर तक, ऊँचे चढ़ते जायें॥
रुकें न बढ़ते कदम गगन में, तड़ित भले घहरे॥

हम बलवान बनें यह हमको, केसरिया बतलाये।
तन- मन से हों बली देश में, सम्मति, सुमति सुहाये॥
चाहे शत्रु, पुरन्दर बनकर, क्यों न हमें ललकारे।
प्राण चले जायें पर अपने, पैर न पीछे डारें॥
सुनकर यह हुंकार दनुजता, बीच राह ठहरे॥

लेकिन कभी भूलकर भी, निर्बल पर हाथ न डारें।
इतने बनें विनीत सत्य के, शिशु से भी हम हारें॥
आशावान् भले ही हों, पर तुच्छ न हो अभिलाषा।
आस्था बदले नहीं भले ही, जीवन पलटे पासा॥
बने विनीत शीश पर देवों, की छाया छहरे॥

भक्ति हमारी दृढ़ हो प्रभु को, क्षणभर कभी न भूलें।
इतने ऊँचे उठें कि उनके, ज्योति कलश को छू लें॥
लेकिन मानव की पीड़ा से, टूटे कभी न नाता।
यह केसरिया केतु हमें है, बार- बार सिखलाता॥
हो अभिनव आवर्तन उतरें, हम इतना गहरे॥

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