गीत संजीवनी-7

पवन सुगंधित जैसे मन को

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पवन सुगन्धित जैसे मन को, नन्दनवन कर देता।
वैसे ही गुरुदेव का दर्शन, मानव दुःख हर लेता।
बोलो जय गायत्री माँ- बोलो जय गायत्री माँ॥

इस धरती पर दुःख का कारण, अंतःकल्मष को बतलाकर।
भ्रम में फँसकर,पंक में घुसकर,मुक्त हो जिसका सम्बल पाकर।
सरल मंत्र गायत्री का जो, जपा करे वह चेता॥ वैसे ही...॥

युग निर्मात्री मोक्ष है देती, मानव में देवत्व जगाकर।
शुचि शीतलता, पाप है हरती, धार सुधा की नित्य बहाकर।
इस नवयुग में राज करेगा, जो हो आत्मविजेता॥ वैसे ही...॥

शान्तिकुञ्ज से शक्ति पुञ्ज ले, जन- जन को सन्देश सुनाती।
सजल- श्रद्धा, देती प्रज्ञा, सत्कर्मों की ओर बढ़ाती।
जैसे नाविक तूफानों में, नाव धैर्य से खेता॥ वैसे ही...॥
बोलो जय गायत्री माँ- बोलो जय गायत्री माँ॥

मुक्तक-

दुःख के कारण दोष हैं, समझो इतनी बात।
गुरु कर देंगे दूर सब, दो तुम उनका साथ॥

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