गीत संजीवनी-7

नये जगत की नयी कल्पना

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नये जगत की नयी कल्पना, को आओ साकार बनायें।
चलो नया संसार बसायें॥

हृदय- हृदय में दीप जलें जो, अन्तर का अज्ञान मिटा दें।
नयन- नयन में निर्माणों के, सुन्दर मनहर स्वप्न सजा दें॥
सबको दें विश्वास लक्ष्य का, और सतत् चलने का साहस।
ज्योति भरें ऐसी जीवन में, कभी न आये गहन अमावस॥
फूट पड़े आत्मा का झरना, गंगा जल की धार बहायें॥

मानव शान्ति पा सके ऐसी, नई धरा हो नया गगन हो।
साँस ले सके सुख की मानव, ऐसी शीतल मन्द पवन हो॥
बढ़े चलो पथ पर प्रकाश के, ऐसी प्राणमयी हो आशा।
स्वार्थ रहित कर्तव्य भावना, हो इस जीवन की परिभाषा॥
आओ हर घर, हर आँगन में, आज खुशी के फूल खिलायें॥

जिसमें पनपे नैतिकता वह, नया भवन निर्माण करेंगे।
साहस, बल, पुरुषार्थ जुटा, तन, की ईंटों से नींव भरेंगे॥
रच डालेंगे चिर नूतन इतिहास, क्रिया का सम्बल लेकर।
एक नया संघर्ष सृजन का, होगा अब प्राणों में प्रतिपल॥
मिटते- मिटते भी अपने, कर्मों से नव गीता लिख जायें॥


संगीत आत्मिक उन्नति और स्वस्थ शरीर का साधन है।

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