निष्ठा लगन परिश्रम से जो, करता अपना काम है।
वाणी में भगवती
विराजे, अन्तर में श्रीराम
हैं॥
आत्ममनोबल जिसका साथी, अंगद सा दृढ़ पाँव है।
भक्ति, शक्ति का अलख जगाता, गली- गली हर
ठाँव है।
करता जो उपकार सभी का, आजीवन निष्काम
है॥
उसका ही जीवन इस जग में, धन्य- धन्य अभिराम
है॥
वाणी में
भगवती................॥
नहीं रूढ़ियों का पोषक जो ,, शोषक नहीं गरीब का।
अपना दर्द समझता है जो, दुनियाँ के हर जीव
का॥
मंजिल पर चलते जाना ही, जिसका लक्ष्य महान है।
मानवता का मान बढ़ाने, हो जाता बलिदान
है॥
वाणी में
भगवती................॥
हँस- हँस कर जो लोहा लेता, आँधी से तूफान से।
जान हथेली पर रखकर जो,
भिड़ जाता शैतान
से॥
जन सेवा ही व्रत है जिसका, सारी वसुधा धाम है।
उसका ही जीवन इस जग में, धन्य- धन्य अभिराम
है॥
वाणी में
भगवती................॥
जीवन तप संचित थाती से, जो लेता अनुदान है।
काँटे और फूल दोनों ही, जिसको एक समान
है॥
धर्म- कर्म का मर्म समझता, करता जग कल्याण है।
खोल- खोल कर
गाँठे मन की, जो
हरता अज्ञान है।
वाणी में
भगवती................॥