गीत संजीवनी-12

कब आओगे कृष्ण कन्हाई

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कब आओगे कृष्ण कन्हाई।
फिर से श्याम घटा घिर आई॥

भोगवाद की सघन घटाएँ, भादों की घन सी मँडराए।
क्रूर कंस फिर से बौराए, देव- संस्कृति पर मँडराए॥
देखो दानवता इतराई, फिर से श्याम घटा घिर आई॥

पतन- पाप पूतना विषैली, दुष्प्रवृत्तियाँ हैं जहरीली।
उगल रहा विष काम कालिया, कब नाथोगे हे! साँवलिया॥
जन जीवन जमुना अकुलाई, फिर से श्याम घटा घिर आई॥

हैं धृतराष्ट्र मोह के अन्धे, दुर्योधन के धोखे धन्धे।
बढ़ते हैं कुकृत्य कौरव के, पाण्डव वंचित हैं गौरव से॥
भीष्म, द्रोण पर जड़ता छाई,फिर से श्याम घटा घिर आई॥

देव- संस्कृति बुला रही है, करो दिग्विजय समय यही है।
पाञ्चजन्य में फिर स्वर फूँको, कहो पार्थ से अरे न चूको॥
गीता की फूँको तरुणाई, फिर से श्याम घटा घिर आई॥

मुक्तक-
भारत में फिर से आओ!, मुरली बजाने वाले।
फिर तान वह सुनाओ, गिरिवर उठाने वाले॥
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