गीत संजीवनी-12

दीपावली शुभ पर्व पर

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दीपावली शुभ पर्व पर- दीपक जलाना चाहिए।
बाहर उजाला चाहिए- भीतर उजाला चाहिए॥
घर में उजाला चाहिए- मन में उजाला चाहिए॥

सूर्य, चन्दा है नहीं- इस रात में तो क्या हुआ।
दीपकों को उभरकर जग- जगमगाना चाहिए॥

पात्रता छोटी मगर- मन प्रेम से भरपूर है।
प्राण की बाती जला- शुभ ज्योति पाना चाहिए॥

वेदनाएँ विश्व में- फैली हुई हैं हर जगह।
दुःख बँटाकर दूसरों का- मुस्कुराना चाहिए॥

कर सकेगा पाप अँधियारा- हमारा क्या अरे?
ज्योति ले परमार्थ की हर- पग बढ़ाना चाहिए॥

धन व्यसन बनने न पाये- सावधानी से चलें।
खर्च पर सुविवेक का- अंकुश लगाना चाहिए॥

स्वार्थ का दुर्बुद्धि का- घेरा अगर है तोड़ना।
यज्ञ का सुविचार का- कुछ क्रम बनाना चाहिए॥

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