गीत संजीवनी-12

जो तू मिटाना चाहे

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जो तू मिटाना चाहे जीवन की तृष्णा।
सुबह- शाम बोल बन्दे, कृष्णा, कृष्णा, कृष्णा॥

तृष्णा है डायन सुन लो, वही पूतना है।
कृष्णा की कृपा से हमको, उसे जीतना है॥
विजयी बनाना है यदि तो, बोल कृष्णा, कृष्णा॥

तृष्णा है प्यास भयानक, प्रभु रस का है सागर।
प्यासा मत रह जा बन्दे! सागर तक तू आकर॥
रस से भर ले जीवन को, बोल कृष्णा, कृष्णा॥

तृष्णा का साथ छोड़ दे, क्यों उससे लिप्त है तू।
प्रभु का कहलाकर भी क्यों, यों सन्तप्त है तू॥
तुझको भी तृप्ति मिलेगी, बोल कृष्णा, कृष्णा॥

वह तो बस पूर्णकाम है, कोई नहीं कामना।
तृष्णा की तपन नहीं है, कोई नहीं वासना॥
बच जा इन असुरों से तू, बोल कृष्णा, कृष्णा॥

मुक्तक-
तृष्णा की यदि तपन मिटाना, और सुयोगी बनना।
कृपा अगर पाना है उनकी, तो बोलो श्रीकृष्णा॥

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