गीत संजीवनी-12

कृष्ण कन्हाई मेरे

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कृष्ण कन्हाई मेरे कृष्ण कन्हाई।
विकल हुए भक्तों ने टेर लगाई ॥

जन- जन जब दुःखी हुआ, तुमने अवतार लिया।
दुष्टों को दण्ड दिया, भक्तों को मुक्त किया॥
आपकी उस नीति की, देते हैं दुहाई॥

दुष्ट कर रहे कुचाल, फिर से प्रभु आ जाओ।
पीड़ित हैं ग्वाल- बाल, धीरज तो दे जाओ॥
अब तक तो कभी, नहीं देर लगायी॥

दु्रपद सुतायें अनेक, बुला रहीं कर विलाप।
वीर ठगे बैठे हैं, रोकेगा कौन पाप॥
आप बिना आज करे, कौन सहाई॥

करते हैं इन्तजार, पाण्डव और ग्वाल- बाल।
आओ तो साथ चलें, दिखा दें फिर कमाल॥
दुनियाँ की और तरह, नहीं है भलाई॥

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