गीत संजीवनी-11

संस्कारों की परम्परा

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संस्कारों की परम्परा से, भारत रहा महान।
संस्कारों की गरिमा से, भारत रत्नों की खान॥

संस्कारों से सोना दमके, बने कोयला हीरा।
संस्कारों से माटी मूरत, पीतल बने मँजीरा।
संस्कार ही कर लेते हैं, मन चाहा निर्माण॥

लवकुश क्या थे? संस्कार की थे जीवन्त कहानी।
और भरत के संस्कारों की, भारतवर्ष निशानी।
अभिमन्यु के संस्कार ही, कूद पड़े मैदान॥

लेकिन संस्कारों को जब से, देश गया है भूल।
तब से घर के नन्दन वन में, नहीं महकते फूल।
किधर जा रही है? भारत की वर्तमान सन्तान॥

कुसंस्कार आक्रमण कर रहे, संस्कृति करने ध्वस्त।
घर- घर में घुस पैठ कर रहे, भोगवाद के शस्त्र।
सुसंस्कार ही रोकेंगे अब, ये घातक तूफान॥

जन्म दिवस को छोड़, ‘‘बर्थ- डे’’ मना रहा है देश।
जो देता है अंधकार फैलाने का सन्देश।
‘‘तमसो माँ ज्योतिर्गमय’’ का भूल गये हैं गान॥

संस्कार की परम्परा को, चलो करें प्रारम्भ।
भारत के उज्जवल भविष्य के, खड़े करें स्तम्भ।
है संस्कार समारोहों का इसीलिए अभियान॥

मुक्तक-

संस्कारों की गरिमा समझो, और इसे सब अपनाओ।
अपनी संस्कृति को धारण कर, फिर जगवन्दित हो जाओ॥

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