गीत संजीवनी-11

सौन्दर्य से तुम्हारे

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सौन्दर्य से तुम्हारे, सुन्दर जहान सारा।
हर रूप में तुम्हारा, सौन्दर्य प्राण प्यारा॥

तुम राग रश्मि छवि में, मुस्कान में रमें हो।
वीरान बाग वन में, सुनसान में रमें हो॥
नदियों में निर्झरों में, कलगान है तुम्हारा॥

रवि शशि गगन सितारे, सब रूप हैं तुम्हारे।
अणु रूप है तुम्हारा, विभु रूप है तुम्हारा॥
तुमने अरूप रहकर, हर रूप को सँवारा॥

तुम व्याप्त वेदना में, दुःख यातना में तुम हो।
हर अंश की व्यथा में, हर पूर्णता में तुम हो॥
विषपान भी करेंगे, ले आसरा तुम्हारा॥

हे देव! तव दया से, हो निर्विकार जीवन।
हँसते सुमन- सुमन से, विकसे खिले तपोवन॥
करुणा कृपा निकेतन, हे नाथ! दो सहारा॥

मुक्तक-

सृष्टि का सौन्दर्य, स्रष्टा की कहानी कह रहा है।
गिरि, शिखर, निर्झर, उदधि का अतल पानी कह रहा है॥
उसी की सामर्थ्य है संव्याप्त जड़ में चेतना में।
उसी का यश जगत का हर एक प्राणी कह रहा है॥

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