गीत संजीवनी-11

संग्राम जिन्दगी है

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संग्राम जिन्दगी है, लड़ना उसे पड़ेगा।
जो लड़ नहीं सकेगा, आगे नहीं बढ़ेगा॥

इतिहास कुछ नहीं है- संघर्ष की कहानी।
राणा, शिवा, भगतसिंह- झाँसी की वीर रानी॥
कोई भी कायरों का, इतिहास क्यों पढ़ेगा?

आओ! लड़ें स्वयं से, कलुषों से कल्मषों से।
भोगों से वासना से, रोगों के राक्षसों से॥
कुन्दन वही बनेगा, जो आग पर चढ़ेगा॥

घेरा समाज को है, कुण्ठा कुरीतियों ने।
व्यसनों ने रूढ़ियों ने, निर्मम अनीतियों ने॥
इनकी चुनौतियों से, है कौन जो भिड़ेगा॥

चिन्तन, चरित्र में अब, विकृति बढ़ी हुई है।
चहुँ ओर कौरवों की, सेना, खड़ी हुई है॥
क्या पार्थ इन क्षणों भी, व्यामोह में पड़ेगा॥

मुक्तक-

जिन्दगी माना कठिन संग्राम है- पर हमें साहस न खोना चाहिये।
हाथ असफलता लगे पहले अगर- तो निराशा में न रोना चाहिये॥
कल खिलेंगे फूल इस उत्साह में- बीज श्रम के आज बोना चाहिये।
कुछ नहीं हैं कष्ट या कठिनाइयाँ- स्वयं की पहचान होना चाहिये॥

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