गीत संजीवनी-11

शान्तिकुञ्ज गुरुकुल है पावन

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शान्तिकुञ्ज गुरुकुल है पावन, युगऋषि का तप- धाम है।
यहाँ हिमालय की छाया है, गंगा- गोद ललाम है॥

तपस्थली सप्तऋषियों की, वातावरण दिव्य इसका।
युग का विश्वामित्र यहीं है, सारा विश्व मित्र जिसका॥
युग- वशिष्ठ के ज्ञान यज्ञ की, लपट यहाँ अविराम है।

दीप- अखण्ड यहाँ जलता है, किरण फूटती ज्ञान की।
दर्शन से उकसा करती है, बाती साधक- प्राण की॥
कोटि- कोटि गायत्री जप से, सिद्ध पीठ यह धाम है।

माँ की ममता प्यार पिता का, शिष्य यहाँ पर पाते हैं।
दिव्य आचरण यहाँ गुरू के, जीवन कला सिखाते हैं॥
युग के तक्षशिला, नालन्दा, गुरुकुल, तुम्हें प्रणाम है।

आध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक, क्रान्ति यहाँ से होती है।
ज्ञान और विज्ञान मिलन की, यहाँ अनूठी रीति है॥
इसी धरा पर स्वर्ग सृजन की, छटा अरे! अभिराम है।

र- नारी का, ऊँच- नीच का, जाति- धर्म का भेद नहीं।
सब ही एक समान यहाँ हैं, राग- द्वेष अब शेष नहीं॥
कन्धे से कन्धे मिल करते, महाकाल का काम हैं।

यह अशान्ति से ग्रसित विश्व, अब शान्ति यहाँ ही पायेगा।
आज नहीं तो कल सारा जग, इस छाया में आयेगा॥
माँ- भगवती दुलार लुटाती, संरक्षक श्रीराम हैं।

नोट- मुक्तक की तपःस्थली का......पृ. 89
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