गीत संजीवनी-10

रोज खोया गँवाया है

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रोज खोया गँवाया है दिन आपने, ध्यान आया नहीं॥
ध्यान आया नहीं॥

ठीक है प्राण ये पेट भर कर जिये!
एक क्षण क्या जिये दूसरों के लिये?
नित्य खोया वृथा प्राणधन आपने॥ ध्यान आया नहीं?

जिन्दगी क्या सुमन गन्ध बनकर रही?
श्वाँस गति क्या कभी द्वन्द्व बनकर रही?
नाद से क्या जगाया है क्षण आपने॥ ध्यान आया नहीं?

पाँखुरी पाँखुरी से मिली क्या कभी,
बन सकी आँख, गंगाजली क्या कभी।
एक भी क्या खिलाया सुमन आपने॥ ध्यान आया नहीं?

प्राण अनुदान कितना मिला है तुम्हें।
देव वरदान कितना मिला है तुम्हें॥
एक कण भी चुकाया है ऋण आपने॥ ध्यान आया नहीं?

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