गीत संजीवनी-10

विश्वासों के दीप जलाकर (ब)

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विश्वासों के दीप जलाकर, युग ने तुम्हें पुकारा।
सूर्य- चन्द्र सा इस जगती में, चमके भाल तुम्हारा॥

उलटी हुई दिशायें मानव, सुख सपनों में खोया।
अन्धकार में भटक रहा, अज्ञान निशा में सोया॥
नालन्दा के ज्ञान कहाँ हो, आज लौटकर आओ।
हल्दीघाटी जगो देश में, देशभक्ति भर जाओ॥
शोषण, अत्याचार, दम्भ से, मुक्त बने जग सारा॥

जाग उठो चित्तौड़ देश में, जौहर ज्वाला जागे।
कुरुक्षेत्र जागो कुण्ठाओं का, कौरव दल भागे॥
माँ मदालसे जागो तुम बिन, बच्चे भटक रहे हैं।
उठो पद्मिनी आज शील से, खिलजी अटक रहे हैं॥
तुम जागो तो जाग उठें, मन्दिर, मस्जि़द, गुरुद्वारा॥

सावित्री इस सत्यवान को, यम से उठो छुड़ाओ।
लक्ष्मी बाई जगो, फिरंगी संस्कृति से टकराओ॥
निद्रा त्याग जागता जग जब, उगता सूर्य अकेला।
जागो नव- विभूतियों फिर से, आज जागरण वेला॥
राह दिखाओ इस भटके, जग को बनकर ध्रुवतारा।
सूर्य- चन्द्र सा इस जगती, में चमके भाल तुम्हारा॥

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