गीत संजीवनी-10

विश्वासों के दीप जलाकर (अ)

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विश्वासों के दीप जलाकर, युग ने तुम्हें पुकारा।
सूर्य- चन्द्र सा इस जगती में, चमके भाल तुम्हारा॥

सदियाँ बीत गईं कितनी ही, छाया घोर अँधेरा।
पल- पल बढ़ता ही जाता है, महानाश का घेरा॥
जगो शंकराचार्य सनातन, संस्कृति को जीवन दो।
जगो विवेकानन्द विवेकी, भारत का हर जन हो॥
जागो बुद्ध तोड़ दो जग के, भव- बन्धन की कारा॥

अनाचार का शीश काटने, परशुराम अब जागो।
जागो भामाशाह राष्ट्र के, हित में सब कुछ त्यागो॥
हरिश्चन्द्र जागो असत्य की, छल की रोको आँधी।
राजनीति का छद्म छुड़ाने, जागो मेरे गाँधी॥
टूटी है पतवार आज, नौका के बनो सहारा॥

राणासाँगा जगो शत्रु से, रण में शौर्य दिखाओ।
पवनपुत्र जग पड़ो लोभ- लंका को आग लगाओ॥
जागो मेरे चिर अतीत की, निष्ठाओं सब जागो।
दो जग को प्रकाश का नूतन, दान नींद अब त्यागो॥
जग में शान्ति प्रेम बरसाओ, बन सुरसरि की धारा॥

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