गीत संजीवनी-10

लागी रे लगन ओ माँ

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लागी रे लगन ओ माँ, एक तेरे नाम की॥

भवसागर में भटकी- भटकी, थकी जीव आत्मा।
ज्ञान का दीप जला दो, मिले परमात्मा॥ हे माँ!..
पाई रे शरण तेरी, कृपा श्रीराम की॥

गीत तेरा गाये बिना, भक्ति नहीं जागती।
दिल में बसाये बिना, शक्ति नहीं जागती॥ हे माँ!..
भगवती कहूँ की अम्बा, जुदाई है नाम की॥

मन का सारा मैल धोकर, निर्मल मन कीजिए।
निर्मल बनाकर मन को, सद्बुद्धि दीजिए॥ हे माँ!..
अब न सताये हे माँ, चिन्ता धन धाम की॥

एक तेरे दर्शन खातिर, एक तेरे प्यार में।
ढूँढते फिरे हम तुझको, सारे संसार में॥ हे माँ!..
तुझे नहीं पाया तो यह, दुनियाँ किस काम की॥

ले चल हमें तू हे माँ, जहाँ तेरा वास हो।
सब कुछ दिखाई दे माँ, इतना प्रकाश हो॥ हे माँ!..
अन्तिम अभिलाषा है माँ, पूर्ण विराम की॥

समझ नहीं आती हे माँ, कहाँ तेरा वास है।
जिससे भी पूछूँ हे माँ, करे परिहास है॥ हे माँ!..
अब तो है आशा केवल, शान्तिकुञ्ज धाम की॥

मुक्तक-
मानव भटक गया है पथ से, लोभ- मोह में भूला है।
कोई पद में, कोई धन में, कोई मद में फूला है॥
हमको माँ तेरे चरणों में, देती मुक्ति दिखाई है।
जिसने सच्चा किया समर्पण, उसने सद्गति पाई है॥

कालिय मद मर्दन कियो, कृष्ण कुँवर नन्दलाल।
नृत्यकाल पद घात से, प्रकट भये सब ताल॥
रतन चतुर्दश मथि लियो, देव- दनुज जेहिं काल।
प्रमुदित मन निरतत फिरे, इमि प्रकटे सब ताल॥
-- पागलदास
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