गीत संजीवनी-10

राहें नई दिखा जाता जो

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राहें नई दिखा जाता जो, दुःख से भरे जहान को।
ढूँढ़ रही है कब से दुनियाँ, उस सच्चे इन्सान को॥

अंगारों पर चलने वाला, दीप शिखा सा जलने वाला।
जिसने पिया जहर का प्याला, पर बाँटा जग को उजियाला॥
आँच नहीं आने दी जिसने, संकट में भी आन को॥

जिसने औरों को अपनाया, मानवता का मान बढ़ाया।
हँसकर कण्टक पथ अपनाया, स्वेद बहा सागर भर आया॥
यश की बात न भाई जिसको, जीत लिया अभिमान को॥

जिसने सुख की बात न जानी, तूफानों से हार न मानी।
अंगद सा निश्छल अभिमानी, निर्धन किन्तु कर्ण सा दानी॥
तैराकर जिसने दिखलाया, जल में भी पाषाण को॥

जीवन जो कर्मों में बीता, नहीं प्यार का पनघट रीता।
जिसका जीवन तप की गीता, लोभ मोह को जिसने जीता॥
कर साकार दिखाया जिसने, तन में ही भगवान को।

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