लाल ये मशाल पूज्य गुरुजी को प्यारा है।
जिसकी जग- मग ज्योति से, ये सारा जग उजियारा है॥
कौन बड़ा है, कौन है छोटा, ऊँच- नीच क्या होता है।
धर्म के अन्दर वैसा काटे, जो कोई जैसा बोता है।
माँ की ममता एक समान, जग उसका दुलारा है॥
मिथ्या माया- मोह के चक्कर, में डूबा है ये इन्सान।
सद्बुद्धि दें सद्विचार दें, सबको सन्मति दें भगवान।
नर और नारी एक समान, यही गुरु का नारा है॥
दूर हुआ अँधियारा मन का, ऐसा दीप जलाया है।
धर्म- अधर्म और पाप- पुण्य का, स्वर्ग- नरक समझाया है।
कोई नहीं है गैर यहाँ पर, सभी प्रभु को प्यारा है॥
दुष्प्रवृत्तियों के घेरे को, ध्वंस करें इस ज्ञान से।
रहें सदैव सत्य के राही, जीवन बीते शान से।
सीधा- सच्चा जीवन ही बस, परमेश्वर को प्यारा है॥