काम बहुत बड़ा है। उससे संबंधित प्रश्न, समाधान, आधार, प्रयास भी अगणित हैं। इन्हें एक सूत्र में बांधने और क्रमिक गति से प्रगति पथ पर आगे बढ़ने के लिए एक केन्द्रीय तन्त्र खड़ा किये जाने की अनिवार्य आवश्यकता अनुभव की गई और उसकी पूर्ति के लिए अविलंब कदम बढ़ाने की बात सोची गई। इसके लिए शांतिकुंज गायत्री नगर—हरिद्वार के तत्वावधान में अन्यान्य सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के साथ-साथ एक ‘‘प्रवासी कक्ष’’ और स्थापित किया जा रहा है। संस्थान की अन्यान्य इमारतों में एक प्रवासी कक्ष भी होगा। उसमें उपरोक्त गतिविधियों के संचालन का एक सुव्यवस्थित कार्यालय चलता रहेगा।
इस विभाग की एक आकर्षक व्यवस्था यह भी होगी कि भारत आने पर किसी भी देश में बसने वाले प्रवासी भारतीय को गंगा, हिमालय के इस तीर्थ स्थान में पधारने पर इस भवन में वैसी ही सन्तोष जनक सुविधा मिलेगी जैसी कि भारतीय आतिथ्य के अनुरूप होनी चाहिए। होटल अत्यधिक महंगे हैं। धर्मशालाओं में भेड़ बाड़ों जैसी गंदगी पाई जाती है। शांतिकुंज का प्रवासी भवन किसी भी आगन्तुक को हर दृष्टि से सुविधा संतोष प्रदान कर सकने योग्य मिलेगा। निवास, भोजन, वाहन, सहायक आदि को यथा संभव सुविधाएं उपलब्ध कराई जायेंगी। बदले में किसी से कुछ चाहा या मांगा न जायेगा। इच्छा दान पर तो कोई प्रतिबन्ध होगा नहीं। इस आश्रम में पहुंचने पर हर प्रवासी को यह अनुभव होगा कि वह अपने निजी घर में जा पहुंचा और बिछुड़ों को मातृभूमि का जो दुलार, सौजन्य, आतिथ्य मिलना चाहिए वह उसे मिल रहा है। परिभ्रमण के अतिरिक्त योजनाबद्ध संस्कृति प्रशिक्षण इस आश्रम की अपनी मौलिक विशेषता होगी।
प्रवासी आश्रम में दफ्तर, शोध, सूचना-संग्रह, प्रेस, प्रकाशन, विद्यालय, छात्रावास, पत्राचार आदि की ऐसी व्यवस्था जुटाई जाती है जिसमें ऊपर की पंक्तियों में चर्चा किए गए साधनों को जुटाने का प्रयास निरन्तर चलता रहे। प्रचारकों का विद्यालय अपने ढंग का अनोखा होगा जिसमें भारत से अन्यत्र भेजे जाने वाले और उन देशों से यहां प्रशिक्षण के लिए आने वाले दोनों ही स्तर के शिक्षार्थी अपने विषय में सफल सिद्ध होने वाले प्रवीण, पारंगत बन सकेंगे।
भारत भूमि को अपने दूरवर्ती बालकों के लिए अब से बहुत पहले ही इतना तो कर ही गुजरना चाहिए था। विलंब हो जाने पर भी सही अवलंबन उत्साहवर्धक ही माना जाएगा। साधनों के जुटने के साथ-साथ यह स्थापना इतनी प्रखर और सफल होगी कि निराशा भरे अंधेरे वातावरण में बिजली चमकने और अदृश्य के दीख पड़ने पर उठने वाले उत्साह जैसा आनन्द मिल सके।