प्रकृति का अनुसरण

मिट्टी का उपयोग

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मिट्टी में विष को खींचने की अद्भुत शक्ति है। शरीर के जिस भाग को मिट्टी में डाला जायगा, उसका विकार गीली मिट्टी में खिंचकर चला जायगा। गीली मिट्टी को शरीर के किसी रोग युक्त अंग पर बांध दिया जाय और फिर थोड़े समय बाद उसे खोला जाय तो उस मिट्टी में मनुष्य शरीर का विष बहुत अधिक मात्रा में मिलेगा। मिट्टी के उपयोग से स्वास्थ्य सुधार में हमें बहुत सहायता मिल सकती है। उस लाभ से वंचित न रहना चाहिए। निर्दोष पवित्र भूमि पर नंगे पांवों टहलना चाहिए। जहां हरियाली, छोटी-छोटी नरम घास उग रही हो वहां टहलना तो और भी अच्छा है। सोने के लिए यदि मुलायम जमीन पर बिस्तर लगाया जाय तो बड़ा अच्छा है। ऐसा ने हो सके तो चारपाई को जमीन से बहुत ऊंचा न रखकर समीप रखना चाहिए, जिससे भूमि से निकलने वाली वाष्प अधिक मात्रा में प्राप्त होती रहे, पहलवान लोग चाहे, वे अमीर ही क्यों न हों रुई के गद्दों पर कसरत करने की बजाय मुलायम मिट्टी के अखाड़ों में ही व्यायाम करते हैं ताकि मिट्टी के अमूल्य गुणों का लाभ उनके शरीर को प्राप्त होता रहे।

आजकल साबुन से स्नान करने का फैशन चल पड़ा है, परन्तु मिट्टी का प्रयोग साबुन की अपेक्षा हजार दर्जे अच्छा है। साबुन में पड़ने वाला कास्टिक सोडा त्वचा में खुश्की पैदा करता है और रोमकूपों को रोकता है। किन्तु मिट्टी में यह बात नहीं है। वह मैल को दूर करती, तरावट लाती है, रोम कूपों को स्वच्छ करती है, विष को खींचती है और त्वचा को कोमल, ताजा, चमकीली एवं प्रफुल्लित कर देती है। मिट्टी शरीर पर लगाकर स्नान करना एक अच्छा उबटन है, उससे गर्मी के दिनों में उठने वाली मरोडियां-फुन्सियां दूर हो जाती हैं। सिर के बालों को मुल्तानी मिट्टी से धोने का रिवाज अभी तक मौजूद है। इससे मैल दूर होता है। बाल काले मुलायम और चिकने रहते हैं तथा मस्तिष्क में तरावट पहुंचती है। अशुद्ध हाथ साफ करने के लिए मिट्टी ही प्रयोग में लानी चाहिए। बर्तन आदि साफ करने के लिए तो इससे अच्छी और कोई चीज है ही नहीं।

बीमारियों में मिट्टी का प्रयोग ‘गीली मिट्टी की पट्टी के रूप में करना चाहिए। साफ स्थान की कूड़ा-कचरा, कंकड़ आदि से रहित चिकनी मिट्टी चिकित्सा कार्य के लिए अच्छी होती है। कौन-सी मिट्टी अच्छी है कौन-सी खराब है इसके लिए अधिक परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। अपने आस-पास के किसी साफ स्थान से सूखी मिट्टी ले लेनी चाहिए। यह जितनी चिकनी होगी उतनी ही अच्छी होगी। बालू, रेत या बिखर जाने वाली भुसभुसी मिट्टी ठीक नहीं होती। चूल्हा पोतने के लिए जिस मिट्टी को स्त्रियां काम में लाती हैं और गेरू खड़िया आदि बेचने वाले पंसारियों के यहां मिलती है, वह भी अच्छी है। मिट्टी को कूटकर महीन करके फिर उसे चलनी में छान लेना चाहिए जिससे यदि उसमें कूड़ा-कचरा कंकड़ आदि हों तो निकल जावें।

इस छनी हुई मिट्टी में से अपनी आवश्यकता भर लेकर किसी चौड़े तसले, परात आदि बर्तन में रखना चाहिए और उसमें खौलता हुआ पानी इतनी मात्रा में मिलाना चाहिए कि मिट्टी उतनी ही गीली हो पावे जितनी कि कुम्हार की मिट्टी होती है या रोटी बनाने का आटा होता है। पानी डालकर उसे कुछ देर रक्खा रहने देना चाहिए जिससे मिट्टी भली प्रकार गल जाय और पानी की गर्मी ठण्डी हो जाय खौलता हुआ पानी डालने का प्रयोजन यह है कि उस मिट्टी में यदि कोई रोग कीटाणु किसी प्रकार पहुंच गये हों तो वे गर्मी के द्वारा नष्ट हो जायें।

मिट्टी की पट्टी प्रायः हर बीमारी में फायदा पहुंचाती है। ऐसा भय न करना चाहिए कि इससे ठण्ड लग जायेगी, यह भ्रम अनेक परीक्षणों के बाद गलत साबित हुआ है। अन्दरूनी ऐसे गहरे विकार जहां तक दवा का असर ठीक तरह नहीं पहुंच सकता मिट्टी के उपचार से अच्छे हो जाते हैं। गुर्दे की खराबी, मूत्राशय के रोग, पेट के भीतरी फोड़े, गर्भाशय के विकार, दिल की धड़कन, फेफड़ों का क्षय, जिगर की सूजन आदि शरीर के अधिक भीतरी भाग में होने वाले रोगों में उदर या छाती पर मिट्टी की पट्टी बांधने से भीतरी विष धीरे-धीरे खिंच आता है और वे प्राण घातक रोग अच्छी हो जाते हैं।
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