प्रकृति का अनुसरण

प्राकृतिक जीवन स्वास्थ्य का मूलमंत्र है

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पृथ्वी पर रहने वाले पशुओं का अध्ययन कीजिए। गाय, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, ऊंट इत्यादि जानवर अधिकतर प्रकृति के साहचर्य में रहते हैं, उनका भोजन सरल और स्वाभाविक रहता है, खान-पान तथा विहार में संयम रहता है। घास या पेड़-पौधों की हरी ताजी पत्तियां या फल इत्यादि उनकी क्षुधा निवारण करते हैं, सरिताओं और तालाबों के जल से वे अपनी तृषा निवारण करते हैं, ऋतुकाल में विहार करते हैं। प्रकृति स्वयं उन्हें काल और ऋतु के अनुसार कुछ गुप्त आदेश दिया करती है, उनकी स्वयं की वृत्तियां उन्हें आरोग्य की ओर अग्रसर करती हैं। उन्हें ठीक मार्ग पर रखने वाली प्रकृति माता ही है। यदि कभी किसी कारण से वे अस्वस्थ हो भी जाय, तो प्रकृति स्वयं अपने आप उनका उपचार भी करने लगती हैं। कभी पेट के विश्राम द्वारा, कभी धूप, मालिश, रगड़, मिट्टी के प्रयोग, उपवास द्वारा, कभी ब्रह्मचर्य द्वारा किसी न किसी प्रकार जीव-जन्तु स्वयं ही स्वास्थ्य की ओर जाया करते हैं।

पक्षियों को देखिए। संसार में असंख्य पक्षी हैं। हम उन्हें इधर-उधर पेड़-पौधों पर उड़ता, फुदकता, चहकता, आनन्द-मंगल करता देखते हैं, उनका मधुर गुंजन हमारे हृदय सरोवर को तरंगित कर देता है। उनका रंग, भाव भंगी, शरीर की बनावट हमारे मन को मोह लेती है। कौन इन्हें इतना सुन्दर, फुर्तीला सुरीला रखता है? कौन इनके स्वास्थ्य की खैर-खबर रखता है? कौन इन्हें आरोग्य के सम्बन्ध में पाठ पढ़ाता है? और ये जब बीमार पड़ते हैं, तो कौन इनकी दवा-दारू करता है? हमने पक्षियों को बीमारी से अकाल में मरते नहीं देखा। अधिकांश को अन्य पक्षी या मनुष्य मार कर खाते हैं। वे स्वयं अपनी मूर्खता से बीमारी बुलाकर बहुत कम मरते हैं। उनमें पूर्ण स्वस्थ रहने और आरोग्य का मधुर आनन्द लाभ करने की सामर्थ्य है। प्रकृति उनके शरीर की रक्षा करती है। स्वयं शरीर के अन्दर एकत्रित हो जाने वाले विषों को निकालने का प्रयत्न करती है, शरीर के संवर्धन का पूरा-पूरा विधान रखती है। वही उनकी डॉक्टर, हकीम या वैद्य है।

प्रकृति में प्रचुरता है, हर प्रकार की प्रचुरता है। आनन्द, स्वास्थ्य, आरोग्य की इतनी अधिकता है कि हम उसका सीमा बन्धन नहीं कर सकते। स्वास्थ्य की उस अधिकता के कारण ही प्रकृति के अनेक पशु-पक्षी, जीव-जन्तु जीवन का आनन्द लेते हैं, जल, वायु, प्रकाश, भोजन से जीवन तत्व खींचकर वे दीर्घ जीवन के सुख लूटते हैं। प्रकृति के कण-कण में, पत्तियों, फलों, पौधों तथा जल की प्रत्येक बूंद में आरोग्य भरा हुआ है। वायु के प्रत्येक अंश को जिसे हम अन्दर खींचते हैं, जल के प्रत्येक घूंट में जिसे हम पीते हैं, फल और तरकारियों के कण-कण में स्वास्थ्य और बल हमारे लिए संचित है। प्रकृति के पास जीवन को सर्वांग-रूप से स्वस्थ रखने कि लिए सभी उपकरण हैं। प्रकृति में वैचित्र्य है। अपने-अपने स्वभाव, रुचि, काल, अवस्था परिस्थिति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जीव-जन्तु, पक्षी प्रकृति से जीवन-शक्ति खींचता है, उसके द्वारा जैसा भी शरीर उसे मिला है, उसे स्वस्थ और सुन्दर बनाता है, अपनी समस्त शक्तियों को कार्यशील रखता है। प्रकृति के भण्डार में सभी कुछ है। शहद जैसा मधुर पदार्थ क्या कभी मनुष्य बना सकता था? दुग्ध जैसा अमृत-सदृश पदार्थ क्या किसी रासायनिक प्रयोगशाला में तैयार किया जा सकता था? मेवे, फल, तरकारियां, गन्ना प्रकृति ने इस प्रचुरता से उत्पन्न किये हैं कि प्रत्येक जीव को अपनी-अपनी रुचि के अनुसार उचित मात्रा में ये भोजन के पदार्थ उपलब्ध हो जाते हैं। सर्प अपना विष एकत्रित करता है, मधुमक्खी शहद जुटाती है, नींबू खटाई के तत्व पृथ्वी से खींचता है तो करेला कड़वाहट एकत्रित करता है। प्रकृति में षट्-रस का विधान है। इन षट्-रसों में जो जिसे रुचे वह उसी से अपना स्वास्थ्य स्थिर रखता है।

प्रकृति में किसी भी लक्ष्य की पूर्ति के लिए सभी साधन विद्यमान हैं। आपको बाह्य उपचारों की आवश्यकता नहीं। आप जैसा भी काम करना चाहें उसके लिए सभी उपकरण एकत्रित कर सकते हैं। भांति-भांति की जड़ी-बूटियां, पौष्टिक पदार्थ, अमृतोपम दिव्य पदार्थ हमारे लिए संचित हैं। मिट्टी से लेकर धूप, जल, वायु, सूर्य-किरण इत्यादि तक को यह शक्ति दी गई है कि वे हमारे शरीर को सबल और स्वस्थ बना सकें।
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