आज दवाई का इतना प्रचार हमारे अप्राकृतिक जीवन का द्योतक है। पहले तो हम
प्रकृति के नियमों को तोड़ते हैं। जब प्रकृति हमें रोग के रूप में सजा देती
है तो हम तरह-तरह की दवाइयां खाते हैं। इस प्रकार क्या युवक और क्या
युवतियां रसातल के मार्ग में जा रहे हैं। गुप्त रोगों, मूत्र रोगों की
संख्या दिन-प्रतिदिन वृद्धि पर है। हमारा भोजन अप्राकृतिक हो चला है, हमारी
रहायश अस्वाभाविक हो चली है। हम दिन में सोते, रात में सिनेमा देखते,
होटलों-नाचघरों में मजेदारियां करते फिरते हैं। अप्राकृतिक रोशनी में
पढ़ते-लिखते हैं और असमय ही नेत्र रोगों से पीड़ित हो जाते हैं। अतिगर्म
चाय और अति शीतल बर्फदार शर्बत या सोडा लेमन पीकर हम दन्त रोगों के शिकार
बनते हैं। आज के नब्बे प्रतिशत फैशनपरस्त नवयुवक नेत्र और दन्त रोगों से
पीड़ित हैं। अस्वाभाविक मैथुन, वीर्यपात, और व्यभिचार के चक्कर में फंसे
हुए नवयुवकों की संख्या का पता हमें गुप्त रोगों के बढ़ते हुए विज्ञापनों
और चिकित्सकों से लगता है। कलकत्ता शहर की गली-गली में स्वप्नदोष या
धातुक्षय का इलाज होता है।
अप्राकृतिक रीतियों से कच्ची उम्र में वीर्यपात का दुष्परिणाम बड़ा भयंकर
होता है, शरीर जर्जर होता है, युवक भी वृद्ध-सा दीखता है। भले ही हम कितनी
ही चालाकी से पाप करें किन्तु प्रकृति बड़ी सतर्कता से सब कुछ देखती है।
उसके दरबार में माफी नहीं है। क्या बड़ा, क्या छोटा सभी को वह दण्ड देती
है। उसकी आंखों को धोखा नहीं दिया जा सकता, प्रत्येक नीच कर्म के लिए सजा
का विधान है। प्रकृति माता अपने हाथ में डण्डा लिए, तुम्हारे मर्मस्थानों
पर कठोर प्रहार करने के लिए तैयार रहती है। ज्यों-ज्यों तुम वीर्य नाश
करोगे, त्यों-त्यों वह तुम्हें मारते-मारते बेदम वह अधमरा कर देगी। तब भी
यदि न चेतोगे या सुधरोगे, तब अन्त में तुम्हारा इन्तजार करती हुई मृत्यु की
ओर तुम्हें, सड़े फल की तरह फेंक देगी तुम्हें उठाकर नर्क कुण्ड में डाल
देगी।