प्रकृति का अनुसरण

प्रकृति और दीर्घजीवन

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विश्वास रखिए प्रकृति के नियम पालन करने से रोगी से रोगी व्यक्ति पुनः स्वास्थ और आरोग्य प्राप्त कर सकता है। दुबले-पतले जर्जरित शरीर पुनः हृष्ट−पुष्ट और सशक्त बन सकते हैं। जो कार्य पौष्टिक दवाइयां भी नहीं कर सकतीं, वह प्रकृति के नियमानुसार रहने से अनायास ही प्राप्त हो सकता है। वेदों में निर्देश किया गया है— ‘‘कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतंसमाः (यजु.40/2)

अर्थात्— काम करते हुए सौ वर्ष तक जीवित रहने की इच्छा करनी चाहिए।’’ पश्येम शरदः शतं। जीवेम शरदः शतं॥ श्रृणुयाम शरदः शतं। प्रव्रवाम शरदः शतं॥ अदीनः स्याम शरदः शतं। भूयश्च शरदः शतात॥ (यजु.36/24)

‘‘हम सौ वर्ष तक देखें, सौ वर्ष तक जीवें, सौ वर्ष तक सुनें, सौ वर्ष तक बोलें, सौ वर्ष तक समृद्धिशाली रहें।’’

उपरोक्त कथन में हमारे पूर्व पुरुषों ने यह माना है कि यदि हम सचाई से प्राकृतिक नियमों का पालन करें और उनके अनुसार प्राकृतिक जीवन व्यतीत करें, तो हमें अपनी पूरी आयु (अर्थात् सौ वर्ष) तक जीने का अधिकार है और यदि पुरुषार्थ करें तो हमें इससे भी अधिक जीना चाहिए।

यदि प्राकृतिक जीवन अपनाया जाय तो सौ वर्ष तक जीवित रहना कोई बड़ी बात नहीं है। हमारे पूर्व पुरुष, ऋषि-मुनि इत्यादि प्रकृति के पुण्य प्रताप से बड़ी-बड़ी उम्रों वाले हुए हैं। ग्रीस देश के इतिहास में उल्लेख है- ‘‘भारत में एक सौ चालीस वर्ष की आयु तक कई व्यक्ति जीते हैं, सौ वर्ष से ऊपर के मनुष्य को एक निराला नाम देने में आता है।’’ यह लेख आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व का है। यदि स्वाभाविक रीति से हम जीते चलें, प्रकृति के नियमों का पालन करते चलें तो आयु क्षीण न होगी। दीर्घायु प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक नियमों का पालन अत्यन्त आवश्यक है
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