प्रकृति का अनुसरण

तत्वों की न्यूनाधिकता से रोगोत्पत्ति

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रोगी होना और निरोग रहना प्राकृतिक तत्वों की स्थिति पर निर्भर करता है। आहार-विहार की असावधानी के कारण तत्वों का नियत परिणाम घट-बढ़ जाता है। फलस्वरूप बीमारी खड़ी हो जाती है। वायु की मात्रा में अन्तर आ जाने से गठिया, लकवा, दर्द, कम्प, अकड़न, गुल्म, हड़फूटन, नाड़ी विक्षेप आदि रोग उत्पन्न होते हैं। अग्नि तत्व के विकार से फोड़े-फुन्सी, रक्त-पित्त, हैजा, दस्त, क्षय, श्वांस, उपदंश दाह, खून फिसाद आदि बढ़ते हैं। जलतत्व की गड़बड़ी से जलोदर, पेचिश, संग्रहणी, बहुमूत्र, प्रमेह, स्वप्नदोष, सोम, प्रदर, जुकाम, खांसी जैसे रोग पैदा होते हैं, पृथ्वी तत्व बढ़ जाने से फीलपांव, तिल्ली-जिगर, रसौली, मेदवृद्धि, मोटापा आदि रोग होते हैं। आकाश तत्व के विकार से मूर्च्छा, मृगी, उन्माद, पागलपन, सनक, अनिद्रा, बहम, घबराहट, दुःस्वप्न, गूंगापन, बहरापन, विस्मृति आदि रोगों का आक्रमण होता है। दो, तीन या चार, पांच तत्वों के मिश्रित विकारों से विकारों की मात्रा के अनुसार अनेकानेक रोग उत्पन्न होते हैं।

अग्नि की मात्रा कम हो जाया तो शीत, जुकाम, नपुंसकता, गठिया, मंदाग्नि, शिथिलता, सरीखे रोग उठ खड़े होते हैं और यदि उसकी मात्रा बढ़ जाय तो चेचक, ज्वर, फोड़े सरीखे रोगों की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार अन्य तत्वों की कमी हो जाना अथवा विकृत हो जाना रोगों का हेतु बन जाता है। शरीर प्रकृति के पंच तत्वों का बना है, यदि सब तत्व अपनी नियत मात्रा में यथोचित रूप से रहें तो बीमारियों का कोई कारण नहीं रहता। जैसे ही इनकी उचित स्थिति में अन्तर आता है वैसे ही रोगों का उद्भव होने लगता है। रसोई का स्वादिष्ट और लाभदायक होना इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें पड़ने वाली चीजें नियत मात्रा में हों। चावल, दलिया, दाल, हलुआ, रोटी आदि में यदि अग्नि कम ज्यादा लगे, पानी ज्यादा या कम पड़ जाय, तो भोजन का स्वाद गुण और रूप बिगड़ जाता है। यही दशा शरीर की है, तत्वों की मात्रा में गड़बड़ी पड़ जाने स्वास्थ्य में निश्चित रूप से खराबी आ जाती है।

जिस कारण से कोई विकार पैदा हुआ हो उसी कारण को दूर करने से वह विकार भी दूर हो जाता है। कांटा लग जाने से दर्द हो रहा है तो उस कांटे को निकाल देने से दर्द भी बन्द हो जाता है। मशीन में तेल न होने के कारण वह भारी चल रही हो और आवाज कर रही हो तो उसके कल-पुर्जों में तेल डाल देने से वह खराबी दूर हो जाती है। दीवार में से ईंट निकल पावें तो वहां ईंट लगानी पड़ती है और जहां चूना निकल गया हो वहां चूना लगा देने से मरम्मत हो जाती है। यही बात स्वास्थ्य सुधार के बारे में भी है। जिस तत्व की न्यूनता-अधिकता या विकृति से वह गड़बड़ी पैदा हुई हो उसे सुधार देने से सारा संकट टल जाता है।

तत्व-चिकित्सा का यही आधार है, पंच तत्वों के बने शरीर को निरोग बनाने के लिए पंच तत्वों द्वारा चिकित्सा करना ही सब से अच्छा उपाय है। इस उपाय से सुविधापूर्वक बीमारियों का निवारण हो जाता है।
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