पंच तत्वों में मिट्टी, पानी, हवा, आग के काम जिस प्रकार प्रत्यक्ष दीख
पड़ते हैं वैसे आकाश का अस्तित्व अनुभव में नहीं आता। परन्तु सच पूछा जाय
तो इन सबकी अपेक्षा शक्ति सम्पन्न, क्रियाशील और प्रभावकारी आकाश ही है।
आकाश का अर्थ कोई ‘हवा’ समझते हैं, कोई ‘बादल’ या ‘शून्य’ समझते हैं, कोई
कुछ समझते हैं। यथार्थ में आकाश एक ऐसा सूक्ष्म पदार्थ है जो हर पोले और
ठोस पदार्थ में न्यूनाधिक मात्रा में व्याप्त है। अंग्रेजी भाषा में इस
तत्व को ‘ईथर’ कहते हैं। रेडियो में जो दूर-दूर से शब्द ध्वनियां आती हैं
वे इस ईथर द्वारा ही आती हैं। वायु की चाल तो प्रति मिनट डेढ़ ही मील है,
यदि यह शब्द वायु द्वारा आते तो इंग्लैण्ड से हिन्दुस्तान तक आने में
हफ्तों लग जाते। फिर हवा का रुख उलटा होता तब तो वे शब्द शायद आ ही न पाते।
इसलिए ऐसा न समझना चाहिए कि बेतार का तार वायु द्वारा आता है। यह आकाश
(ईथर) द्वारा आता है। आकाश का गुण ‘शब्द’ माना गया है। जितने भी शब्द होते
हैं, वे आकाश के कारण होते हैं। यदि आकाश न हो तो शंख-घण्टा, घड़ियाल,
तोप-बन्दूक, मोटर किसी की आवाज न सुनाई पड़े, यहां तक कि हम बातचीत भी न कर
सकें, किसी के मुंह से एक शब्द भी न निकले।
शब्द के दो भेद हैं। (1) आवाज (2) विचार। आवाज की तरह विचार भी एक स्वतंत्र
पदार्थ है। शब्द के परमाणुओं का आदान-प्रदान दुनिया में होते हुए हम नित्य
देखते हैं। बातचीत द्वारा अपनी इच्छा, अनुभूति भावना और स्थिति को दूसरों
को देते हैं, शब्दों के परमाणुओं को विशेष यन्त्र द्वारा बिजली की शक्ति के
साथ फेंकने से वे रेडियो यन्त्र द्वारा पृथ्वी के कोने-कोने में सुने जाते
हैं।
विचार का भी ऐसा ही विज्ञान है। हमारे मस्तिष्क में जो विचार उठते हैं वे
एक प्रकार की विद्युत तरंगों की भांति आकाश में फैल जाते हैं और कभी नष्ट
नहीं होते। जैसे जगह-जगह से थोड़ी भाप उड़-उड़कर बड़े बादल जमा हो जाते
हैं, उसी प्रकार एक प्रकार के विचार अपनी ही किस्म के अन्य अनेकों
मस्तिष्कों में से निकले हुए विचारों के साथ मिलकर अपना एक बड़ा रूप बादल
का-सा रूप बना लेते हैं और इधर-उधर उड़ते रहते हैं।
इन विचार बादलों का यह स्वभाव होता है कि जहां अपनी समानता पाते हैं वहीं
दौड़ जाते हैं। जैसे एक कौवे के कांव-कांव करने पर अन्य अनेकों कौवे
इधर-उधर से उड़कर वहीं आकर इकट्ठे हो जाते हैं, उसी प्रकार यह विचार बादल
भी अपनी जाति वाले के पास उड़कर क्षण भर में जा पहुंचते हैं। जैसे कोई आदमी
एक समय, क्रोध, आत्महत्या, धूर्तता, चोरी आदि के विचार कर रहा हो तो
अनेकों व्यक्तियों द्वारा वैसे ही विचार भूतकाल या वर्तमान काल में किये
गये हैं तो उनके विचार बादल उस आदमी के पास आकर इकट्ठे हो जाते हैं।
फलस्वरूप उसकी क्रोध आदि की प्रवृत्तियां और अधिक बढ़ जाती हैं और उस दिशा
में उसे नई-नई तरकीबें सूझ पड़ती हैं। इसी प्रकार प्रेम, उत्साह, त्याग,
परमार्थ, संयम आदि के विचार करने पर अनेक सत्पुरुषों द्वारा किए हुए उसी
प्रकार के विचार इकट्ठे हो जाते हैं और उस मार्ग में अधिक उत्साह प्राप्त
होता है।