पुरुषों को अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक संवेदनशील होती हैं फलस्वरुप सामान्य सी पीड़ा में ही वे उद्विग्न हो उठती हैं । बच्चों के दुःख कष्ट, पतियों के मंगल की उन्हें हर धड़ी चिन्ता बनी रहती है । हमारे देश में नारी जाति का जीवन वैसे ही बहुत उपेक्षित सा है । कन्याओं के विवाह के समय अभिभावकों को जो कष्ट उठाने पड़ते हैं उनमें स्वभावतः बच्चियाँ आत्महीनता का अनुभव करती हैं । दुर्भाग्य से यदि कहीं उनके सिर का आश्रय समाप्त हो जाये तब तो उन पर विपत्ति का पहाड़ ही टूट पड़ता है ।
ऐसे अवसरों पर भगवती गायत्री के अनुष्ठान पुरश्चरण उनके लिए कितने कल्याण कारक होते हैं इस बात का अध्ययन हम लम्बे अर्से से करते आ रहे हैं । दीर्घकालीन अनुभवों से हमें यह विश्वास हो गया कि पुरुषों द्वारा सम्पन्न अनुष्ठानों की अपेक्षा नारियों की गायत्री साधनाऐं अधिक शीघ्र सफल होती हैं । स्त्रियों के लिए कुछ विशेष अनुष्ठान यहाँ दिये जा रहे हैं, जिनका वे समय पर उपयोग कर सकती हैं, उससे उन्हें ब्रह्मचर्य तो मिलता ही है कष्ट-कठिनाइयों से भी छुटकारा मिलता है ।
विविध प्रयोजनों के लिए कुछ साधनायें नीचे दी जाती हैं-
मनो-निग्रह और ब्रह्म-प्राप्ति के लिए
विधवा बहिनें आत्म-संयम, सदाचार, विवेक, ब्रह्मचर्य पालन, इन्द्रिय-निग्रह एवं मन को बस में करने के लिए गायत्री साधना का ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयोग कर सकती है । जिस दिन से यह साधना आरम्भ की जाती है उसी दिन से मन में शान्ति, स्थिरता, सदृबुद्धि और आत्म-संयम की भावना पैदा होती है । मन पर अपना अधिकार होता है, चित्त को चंचलता नष्ट होती है, विचारों में सतोगुण बढ़ जाता है । इच्छाऐं, रुचियाँ, क्रियाऐं, भावनाऐं, सभी सतोगुणी, शुद्ध और पवित्र रहने लगती है । ईश्वर-प्राप्ति, धर्मं-रक्षा, तपश्चार्या, आत्म-कल्याण और ईश्वर आराधना में मन विशेष रुप से लगता है । धीरे-धीरे उसकी साध्वी, तपस्विनी, ईश्वर-परायण एवम् ब्रह्मवादिनी जैसी स्थिति हो जाती है, गायत्री के वेष में भगवान का उसे साक्षात्कार होने लगता है और ऐसी आत्म-शान्ति मिलती है, जिसकी तुलना में सधवा रहने का सुख उसे नितान्त तुच्छ दिखाई पड़ता है ।
प्रातःकाल ऐसे जल से स्नान करें जो शरीर को सह्य हो, अति शीतल या अति उष्ण जल स्नान के लिए अनुपयुक्त है । वैसे तो सभी के लिए विशेष रुप से असह्य तापमान का जल स्नान के लिए हानिकारक है ।
स्नान के उपरान्त गायत्री साधना के लिये बैठना चाहिए । पास में जल का भरा हुआ पात्र रहे । जप के लिए तुलसी की माला और बिछाने के लिए कुशासन ठीक है । वृषभारूढ़ श्वेत वस्त्र धारी, चतुर्भुजी, प्रत्येक हाथ में माला, कमण्डल, पुस्तक और कमल-पुष्प लिए हुए प्रसत्र मुख प्रौढ़ावस्था गायत्री का ध्यान करना चाहिए । ध्यान सद्गुणों की वृद्धि के लिए, मनो-निग्रह के लिए बड़ा लाभदायक है ।
कुमारियों के लिए आशाप्रद भविष्य की साधना
कुमारी कन्यायें अपने विवाहित जीवन में सब प्रकार की सुख शान्ति की प्राप्ति के लिए भगवती को उपासना कर सकती हैं । पार्वती जी ने मनचाहा वर पाने के लिए नारद जी के आदेशानुसार तप किया था और वे अन्त में सफल मनोरथ हुई थीं । सीताजी ने मनोवांछित पति पाने के लिए गौरी (पार्वती) की उपासना की थी । नवदुर्गाओं में आस्तिक घरानों की कन्यायें भगवती की आराधना करती हैं, गायत्री की उपासना उनके लिए सब प्रकार मंगलमय है ।
गायत्री का चित्र, प्रतिमा अथवा मूर्ति को किसी छोटे आसन या चौकी पर स्थापित करके उसकी पूजा वैसे ही करनी चाहिए, जैसे अन्य देव प्रतिमाओं की, की जाती है । प्रतिमा के आगे एक छोटी तस्वीर रख लेनी चाहिए और उसी स्तर पर चन्दर, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, पुष्प, जल, भोग आदि पूजा सामग्री चढ़ानी चाहिए, आरती करनी चाहिए, मूर्ति के मस्तक पर चन्दन लगाया जा सकता है, पर यदि चित्र है तो उसके चन्दन आदि नहीं लगाना चाहिए, जिससे उसमें मैलापन न आवे । नेत्र बंद करके ध्यान करना चाहिए और मन ही मन कम से कम चौबीस मन्त्र गायत्री के जपने चाहिए । गायत्री का चित्र या मूर्ति अपने यहाँ प्राप्त न हो सके तो इसके लिए गायत्री तपोभूमि मथुरा को लिखना चाहिए । इस प्रकार की गायत्री-साधना कन्याओं को उनके लिए अनुकूल वर, अच्छा घर तथा सौभाग्य प्रदान करने में सहायक होती है ।
सधवाओं के लिए मंगलमयी साधना
अपने पतियों को सुखी, समृद्ध, स्वस्थ, प्रसन्न, दीर्घजीवी बनाने के लिए सधवा स्त्रियों को गायत्री की शरण लेनी चाहिए । इससे पतियों के बिगड़े हुए स्वभाव, विचार और आचरण शुद्ध होकर इनमें ऐसी सात्विक बुद्धि आती है कि वे अपने ग्रस्त जीवन के कर्तव्य-धर्मों को तत्परता एवं प्रसन्नतापूर्वक पालन कर सकें। इस साधना से स्त्रियों के स्वास्थ तथा स्वभाव में एक ऐसा आकर्षण पैदा होता है जिससे वे सभी को परम प्रिय लगती है और उनका समुचित सत्कार होता है । अपना बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य, घर के अन्य लोगों का बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य, आर्थिक तंगी, दरिद्रता, बढ़ा हुआ खर्च, आमदनी की कमी, पारिवारिक क्लेष, मन मुटाव, आपसी राग-द्वेष एवं बुरे दिनों के उपद्रव को शान्त करने के लिए महिलाओं को गायत्री उपासना करनी चाहिए । पिता के कुल एवं पतिकुल दोनों ही पक्षों के लिए यह साधना उपयोगी है पर सधवाओं की उपासना विशेष रुप से पति कुल के लिए ही लाभदायक होती है ।
प्रातःकाल से लेकर मध्यान्ह्काल तक उपासना कर लेनी चाहिए । जब तक साधना न की जाय भोजन नहीं करना चाहिए । हाँ जल पिया जा सकता है । शुद्ध शरीर, मन और शुद्ध वस्त्र से पूर्व की ओर मुँह करके बैठना चाहिए । केशर डालकर चन्दन अपने हाथ से घिसें और मस्तक,ह्रदय तथा कण्ठ पर तिलक छापे के रूप में लगावे। तिलक छोटे से छोटा भी लगाया जा सकता है, गायत्री की मूर्ति या चित्र की स्थापना करके उसकी विधिवत पूजा करें । पीले रंग का पूजा के सब कार्यो में प्रयोग करें । प्रतिमा का आवरण पीले वस्त्रों का रखें । पीले पुष्प, पीले चावल, बेसनी लड्डू आदि पीले पदार्थ का भोग, केशर मिले चंदन का तिलक, आरती के लिए पीला घृत न मिले तो उसमें केशर मिलाकर पीला कर लेना चाहिए, चन्दन का चूरा, धुप इस प्रकार पूजा में पीले रंग का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए । नेत्र बन्द करके पीतवर्ण आकाश में पीले सिंह पर सवार, पीत वस्त्र पहने गायत्री का ध्यान करना चाहिए । पूजा के समय सब वस्त्र पीले न हो सकें तो कम से कम एक वस्त्र अवश्य पीला होना चाहिए । इस प्रकार पीतवर्ण गायत्री का ध्यान करते हुए कम से कम २४ मन्त्र. गायत्री के जपने चाहिए । जब अवसर मिले, तभी मन ही मन भगवती का ध्यान करतीं रहें । महीने की हर एक पूर्णमासी को व्रत रखना चाहिए । अपने नित्य आहार में एक चीज पीले रंग की अवस्य ले लें । शरीर पर कभी-कभी हल्दी की उबटन कर लेना अच्छा है । यह पीतवर्ण साधना दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने के लिए परम उत्तम है ।
सन्तान सुख देने वाली उपासना
जिनकी सन्तान बीमार रहती है, अल्प आयु में ही मर जाती है, केवल पुत्र या कन्यायें ही होती हैं, गर्भपात हो जाते हैं, गर्भ स्थापित ही नहीं होता, बन्ध्या दोष लगा हुआ है, अथवा सन्तान दीर्घसूत्री, आलसी, मन्द-बुद्धि, दुर्गुणी, आज्ञा उल्लंघनकारी, कटुभाषी,या कुमार्ग गामी है, वे वेदमाता गायत्री की शरण में जाकर इन कष्टों से छुटकारा पा सकती हैं । हमारे सामने ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिनमें स्त्रियों ने वेदमाता गायत्री के चरणों में अपना अञ्चल फैलाकर सन्तान-सुख माँगा है और भगवती ने उन्हें वह प्रसन्नतापूर्वक दिया है । माता के भण्डार में किसी वस्तु की कमी नहीं है उनकी कृपा को पाकर मनुष्य दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु प्राप्त कर सकता है कोई वस्तु ऐसी नहीं जो माता की कृपा से प्राप्त न हो सकती हो, फिर सन्तान सुख जैसी साधारण बात की उपलब्धि में कोई अड़चन नहीं हो सकती ।
जो महिलायें गर्भवती है, वे प्रात: सूर्योदय से पूर्व या रात्रि को सूर्य अस्त के पश्चात् अपने गर्भ में गायत्री के सूर्य सदृश् प्रचण्ड तेज का ध्यान किया करें और मन ही मन गायत्री जपें तो उनका बालक तेजस्वी, बुद्धिमान, चतुर दीर्घजीवी तथा यशस्वी होता है ।
प्रात:काल कटि प्रदेश में भीगे वस्त्र रखकर शांत चित से ध्यानावस्थित होना चाहिए और अपने योनि मार्ग में होकर गर्भाशय तक पहुँचता हुआ गायत्री का प्रकाश सूर्य किरणों जैसा ध्यान करना चाहिए । नेत्र बन्द रहे । यह साधना शीघ्र गर्भ स्थापित करने वाली है। कुन्ती ने इस साधना के बल से गायत्री के दक्षिण भाग (सूर्य भगवान्) को आकर्षित करके कुमारी अवस्था में ही कर्ण को जन्म दिया था। यह साधना कुमारी कन्याओं को नहीं करनी चाहिये।
साधना से उठकर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए और अर्घ्य से बचा हुआ एक चुल्लू जल स्वयं पीना चाहिए। इस प्रयोग से बंध्याएं गर्भ धारण करती हैं, जिनके बच्चे मर जाते हैं या गर्भपात हो जाता है, उनका यह कष्ट मिटकर सन्तोषदायी सन्तान उत्पन्न होती हैं।
रोगी, कुबुद्धि, आलसी, चिड़चिड़े बालकों को गोद में लेकर मातायें हंसवाहिनी, गुलाबी कमल पुष्पों से लदी हुई, शंख-चक्र हाथ में लिये गायत्री का ध्यान करें और मन-ही-मन जप करें। माता के जप का प्रभाव गोदी में लगे बालक पर होता है और उसके शरीर तथा मस्तिष्क में आश्चर्यजनक प्रभाव होता है। छोटा बच्चा हो तो इस साधना के समय माता दूध पिलाती रहे। बच्चा हो तो उनके सिर और शरीर पर हाथ फिराती रहे। बच्चों की शुभ कामना के लिये गुरुवार का व्रत उपयोगी है। साधना से उठकर जल का अर्घ्य सूर्य को चढ़ावें और पीछे बचा हुआ थोड़ा-सा जल बच्चों पर मार्जन की तरह छिड़क दें।