गायत्री की अनुष्ठान एवं पुरश्चरण साधनाएँ

गायत्री अभियान साधना

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विशेष साधना के रूप में चौबीस हजार एवं सवालक्ष जप के अनुष्ठान बहुधा लोग कर लेते हैं। इससे आगे का 24 लक्ष का पुरश्चरण लोगों को कठिन पड़ता है। उसमें नित्य लगभग 6 घंटे साधना में लगाने पड़ते हैं। इतना समय सामान्य रूप से निकाल पाना कठिन होता है। जो साधक लम्बी अवधि का साधना संकल्प करना चाहें और प्रतिदिन घंटे दो घंटे से अधिक समय लगाने की स्थिति में न हों उनके लिए एक वर्षीय ‘गायत्री अभियान साधना’ बहुत उपयुक्त रहती है। इसके अंतर्गत एक वर्ष में निर्धारित तपश्चर्याओं के साथ 5 लक्ष गायत्री मंत्र जप पूरा किया जाता है।

इस साधना अभियान में जप संख्या बहुत अधिक नहीं होती, फिर भी दीर्घकालीन श्रद्धा भरा साधना क्रम साधक के आंतरिक उत्कर्ष की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह एक वर्ष की तपश्चर्या साधक को उपासनीय महाशक्ति से तादात्म्य करा देती है। श्रद्धा और विश्वासपूर्वक की हुई अभियान की साधना अपना फल दिखाये बिना नहीं रहती। ‘‘अभियान’’ एक ऐसी तपस्या है, जो साधक को गायत्री शक्ति से भर देती है। फलस्वरूप साधक अपने अन्दर, बाहर तथा चारों ओर एक दैवी वातावरण का अनुभव करता है।

एक वर्ष में पांच लाख जप पूरा करने का अभियान किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरम्भ किया जा सकता है। गायत्री का आविर्भाव शुक्ल पक्ष की दशमी को मध्य रात्रि में हुआ है, इसलिए उसका उपवास पुण्य दूसरे दिन एकादशी को माना जाता है। अभियान आरम्भ करने के लिए यही मुहूर्त सबसे उत्तम है। जिस एकादशी से आरम्भ किया जाय, एक वर्ष बाद उसी एकादशी को समाप्त करना चाहिए।

महीने की दोनों एकादशियों को उपवास करना चाहिए। उपवास में दूध, दही, छाछ, फल, शाक आदि सात्विक पदार्थ लिये जा सकते हैं। जो एक समय भोजन करके काम चला सकें, वे वैसा करें। बाल, वृद्ध, गर्भिणी या कमजोर प्रकृति के व्यक्ति दो बार भी सात्विक आहार ले सकते हैं। उपवास के दिन पानी कई बार पीना चाहिए।

दोनों एकादशियों को 24 मालायें जपनी चाहिए। साधारण दिनों में प्रतिदिन 10 मालायें जपनी चाहिए। वर्ष में तीन सन्ध्यायें होती हैं, उन्हें नवरात्रियां कहते हैं। इन नवरात्रियों में चौबीस-चौबीस हजार के तीन अनुष्ठान कर लेने चाहिए। जैसे प्रतिदिन प्रातःकाल, मध्याह्न, सायंकाल की तीन संध्यायें होती हैं, वैसे ही वर्ष में ऋतु परिवर्तनों की संधियों में तीन नवरात्रियां होती हैं। वर्षा के अन्त और शीत के आरम्भ में आश्विन शुक्ला 1 से लेकर 9 तक। शीत के अन्त और ग्रीष्म के आरम्भ में चैत्र शुक्ला 1 से लेकर 9 तक। ग्रीष्म के अन्त और वर्षा के आरम्भ में ज्येष्ठ शुक्ला 1 से लेकर 9 तक। यह तीन नवरात्रियां हैं। दशमी गायत्री जयन्ती को पूर्णाहुति का दिन होने से वह भी नवरात्रियों में जोड़ दिया गया है। इस प्रकार दस दिन की इस सन्ध्याओं में चौबीस माला प्रतिदिन के हिसाब से चौबीस हजार जप हो जाते हैं। इस प्रकार एक वर्ष में पांच लाख जप पूरा हो जाता है।

संख्या का हिसाब इस प्रकार और भी अच्छी तरह समझ में आ सकता है।

   (1)  बारह महीने की चौबीस एकादशियों को प्रतिदिन 24 मालाओं के हिसाब से 24×24=576 माला।
   (2)  दस-दस दिन की तीन कुल 30 दिन की नवरात्रियों में प्रतिदिन की 24 मालाओं के हिसाब से 30×24=720 माला।
   (3)  वर्ष के 360 दिनों में से उपरोक्त 30+24=54 काटकर शेष 306 दिनों में 10 माला प्रतिदिन के हिसाब से 3060 माला।
   (4)  प्रति रविवार को पांच मालायें अधिक जपनी चाहिए अर्थात् 10 की जगह पन्द्रह माला रविवार को जपी जायें। इस प्रकार एक वर्ष की 52×5=260
         मालायें।

इस प्रकार कुल मिलाकर (576+720+3060+260+4616 मालायें हुई) एक माला में 108 दाने होते हैं। मालायें 4616×108=4,98,528 कुल जप हुआ पांच लाख में करीब उन्नीस सौ कम हैं। चौबीस मालायें पूर्णाहुति के अन्तिम दिन विशेष जप एवं हवन करके पूरी की जाती हैं।

इस प्रकार पांच लाख जप पूरे हो जाते हैं। तीन नवरात्रियों में काम सेवन, पलंग पर सोना, दूसरे व्यक्ति से हजामत बनवाना, चमड़े का जूता पहनना, मद्य-मांस सेवन आदि बातें विशेष रूप से वर्जित हैं। शेष दिनों में सामान्य क्रम रखा जा सकता है, उसमें किसी विशेष तपश्चर्या का प्रतिबन्ध नहीं है।

इस अभियान साधना को पूरा करने की और भी विधियां हैं। पहली विधि तो ऊपर बतायी जा चुकी है दूसरी विधि में साधारणतया 11 माला प्रतिदिन और रविवार या अन्य अवकाश के दिन 24 मालाएं करनी होती हैं। यदि अवकाश के दिन अधिक न करनी हो तो 5 लाख को 360 दिनों में बराबर विभाजन करने पर प्रायः 14 माला का हिसाब बन जाता है। वर्ष में 5 लाख का जप इसी क्रम से पूरा करना आसान हो जाता है। इसमें अपनी सुविधा का क्रम भी निर्धारित हो सकता है पर वह चलना नियमित रूप से ही चाहिए। वर्ष पूरा हो जाने पर उसकी पूर्णाहुति का हवन करा दिया जाय। इसमें एक हजार आहुति से कम न हो। हर महीने पर, हर सप्ताह हवन का क्रम चलाने में सुविधा हो तो वह और भी उत्तम है। अभियान साधना में ब्रह्मचर्य, उपवास, भूमिशयन आदि तपश्चर्या अनिवार्य तो नहीं है पर उसका जितना अधिक पालन निर्वाह हो सके उतना उत्तम है। अभियान साधना में किसी दिन व्यतिक्रम हो तो उसकी पूर्ति अगले दिनों कर लेनी चाहिए। किन्तु इन व्यतिक्रमों का प्रायश्चित करने के लिए दस मालाएं अतिरिक्त जपनी चाहिए।

अभियान एक प्रकार का लक्ष वेध है। इसके लिए किसी पथ प्रदर्शन एवं शिक्षक की नियुक्ति आवश्यक है, जिससे कि बीच-बीच में जो अनुभव हों उनके सम्बन्ध में परामर्श किया जाता रहे। कई बार जबकि प्रगति में बाधा उपस्थित होती है तो उसका उपाय अनुभवी मार्गदर्शक से जाना जा सकता है। एकाकी यात्रा की अपेक्षा विश्वास पथ प्रदर्शक की सहायता सदा ही लाभदायक सिद्ध होती है।

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