अलग अस्तित्व ही नहीं (Kahani)

May 1991

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जिस समय कलकत्ता में प्लेग का प्रकोप हुआ उस समय स्वामी विवेकानन्द सारी ध्यान साधना और योग उपासना भूल कर रोगियों की सेवा करने में जुट गये। उन्होंने अपने सारे शिष्य और साथियों को सेवा कार्य में लगा दिया। एक साधारण व्यक्ति की भाँति व्यग्र और व्याकुल देख कर अनेक लोगों ने कहा “आप तो एक वीतराग योगी हैं। फिर इस तरह साधारण मनुष्यों की तरह व्याकुल क्यों हैं?”

स्वामी विवेकानन्द ने कहा “योगी होने के कारण ही मैं इस तरह साधारण मनुष्य की तरह व्याकुल हो रहा हूँ। दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा अनुभव करना ही तो योग है। योग की न कोई अपनी पीड़ा होती है न कोई अपना दुख। बल्कि उसका तो अपना कोई अलग अस्तित्व ही नहीं होता है। क्योंकि वह समष्टि में मिल जाता है पूरी तरह।”


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