गलतफहमी देर तक नहीं टिकती

May 1991

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इन दिनों एक मान्यता यह बनती जाती है कि अनैतिक माध्यम अपनाने जाने पर कोई व्यक्ति बड़ा बन सकता है। बड़े का अर्थ है सम्पन्न। सम्पन्न का अर्थ है इज्जतदार- दबंग। इस मान्यता को फलित होते देखकर सर्वसाधारण के मन में यह वहम बैठता जाता है कि प्राचीनकाल में जो भी रीति-नीति रही हो, पर इन दिनों यही प्रचलन है कि जो जितना चालाक है, जितनी धूर्तता अपनाता है, उतना ही उसका रौब-दौब है, उतना ही वह नफे में रहता है, उतना ही उसका रौब गालिब रहता है। जो दूसरा पर अपना जितना रौब जता लेगा। वह उतना ही नफे में रहेगा-यह मान्यता जनसाधारण की बनती जाती है।

यह वातावरण का बिगड़ना हुआ। लोगों की मान्यता यदि यही बनती जायेगी, तो फिर अन्ततः इसका परिणाम बुरा होगा। सर्वसाधारण में विवेकशीलता कम पायी जाती है। बहुतों को जो करते देखा जाता है, उसी का अनुकरण होता है। नकल भी उसी की करते हैं, जो मान्यता अनेकों को अपनाते देखी जाती है, जिस रीति-नीति को अधिक लोग अपनाते हैं, जिसमें लाभ उठाते और नफे में रहते देखा जाता है, उसी की साधारण मानसिकता के लोग नकल करने लगते हैं। यह विवेक कम लोगों में है कि किसी ने यदि अनुचित रीति से लाभ उठा लिया है, तो उसकी इज्जत घटेगी, प्रामाणिकता में उँगली उठेगी और साथी-समर्थक घटते जायेंगे। ऐसी दशा में आज नहीं तो कल उसका विश्वास घटेगा, लोगों की आंखों में गिरेगा। ऐसा व्यक्ति हर हालत में घाटे में रहेगा। प्रामाणिक व्यक्ति यदि अधिक बड़ा न बन सके, अधिक पूँजी न कमा सके, तो भी उसका विश्वास तो बना ही रहता है। इतने भर से उसके कितने ही सहायक बन जाते हैं। प्रामाणिकता में यह विशेषता है कि वह लोगों के मनों में अपने लिए श्रद्धा जमाये रहती है। इतने भर से उसके साथी- सहयोगियों की कमी नहीं रहती है। यह इतना बड़ा लाभ है कि आज न सही, कल वह इज्जतदारों में गिना जायेगा और नफे में ही रहेगा।

जिसने अपनी इज्जत गँवा दी, जिसकी ईमानदारी पर शक होने लगे, बेईमान और धूर्त समझा जाने लगे, उसके-संबंध में उन लोगों के मन में भी घृणा उपजती है, जो किसी प्रकार उससे सहायता पाते और लाभ उठाते रहे हैं। लाभ उठाना सबको अच्छा लगता है, पर जब यह पता चलता है कि लाभ बेईमानी से उठाया गया है, तो फिर अविश्वास उठे बिना, नफरत हुए बिना रह नहीं पाता। यह मन का चोर ऐसा है, जो किसी न किसी समय फलित होता है और मित्र को शत्रु में बदल देता है। ऐसा समय आने पर न सहयोग मिलता है न सम्मान। तब प्रतीत होता है कि अवाँछनीयता में लाभ समझने वाले व्यक्ति भी अपना विचार क्यों बदल देते हैं और सच्चाई को सच्चाई और झूठ को झूठ समझने लगते हैं। तब पता चलता है कि जिसमें लाभ सोचा गया था वह हानिकारक निकला। ऐसी स्थिति में विश्वास सदा के लिए चला जाता है।


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